(2014 से लगातार…)
भाग-1
जब साहित्य में भक्तिकाल की बात होती है तो कृष्णमार्गी भक्त सूरदास, राममार्गी तुलसी, ज्ञानमार्गी कबीर और सगुण निर्गुण भक्ति शाखा के बहुत सारे कवियों का नाम लिया जाता है, भक्ति का सामान्य भाव ईश्वर से अन्यतम आस्था का परिचायक है! लेकिन आधुनिक समय में भक्ति और भक्त का सामाजिक और राजनीतिक अर्थ बदल चुका है. अब आमतौर पर तथ्यों को ठेंगा दिखाने वाले सांप्रदायिक समर्थकों को भारत में भक्त कहा जाने लगा. ज्यादातर प्रधानमंत्री मोदी की तरफदारी करने वाले लोगों को ये संज्ञा दी जा रही है. क्योंकि कुछ भारतीय नागरिक के जीवन का लक्ष्य बस एक ही है और वो है प्रधानमंत्री मोदी के बचाव में सोशल साइट्स से लेकर, समाज में किसी पद पर भी रहते हुए उनके विरोधियों को गालियां देना, उनसे लड़ना और बहुत कुछ.
ऐसे लोग आपको हर जगह मिल जाएंगे. वो सेंट्रल कैबिनेट में तो हैं ही, न्यायालय में भी हैं. सचिवालय से लेकर मीडिया संस्थान भी भक्तों से पटे पड़े हैं. आपको भारत के हर संस्थान में भक्त मिल जाएंगे. कुछ तो मोदीजी के इतने जबरा फैन हैं कि उनकी उलूल जुलूल बातों को भी समर्थन देने से नहीं कतराते, प्रबुद्ध वर्ग उन्हें अंधभक्त का दर्जा देते हैं.
इस देश का दुर्भाग्य ही है कि तर्कहीन बातों को सही साबित करने में मीडिया संस्थान भी अपनी महती भूमिका निभाने से नहीं कतराते. जिनका जिम्मा लोगों को जागरूक करने का है, वे ही लोगों को भक्त बनाने पर तुल गये हैं. अब आप समझना शुरू कर दीजिए कि मैं दूसरे प्रकार के भक्तों की ही बात कर रहा हूं.
राजनीति में भक्तिकाल का पदार्पण साल 2014 में हुआ. सौभाग्य से उसी साल नरेंद्र मोदी भारतवर्ष के प्रधानमंत्री चुने गए. भारतीय जनता पार्टी और संघ का ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है?’वो जगजाहिर है. लेकिन बीजेपी का भक्तों से क्या रिश्ता है, वो मैं आपको बताता हूं.
एक दौर था जब भारत ने तर्कसम्मत बातों से दुनिया का दिल जीता था. दुनिया भर में भारतीय मूल के लोगों ने अध्यात्म, योग, चिकित्सा, विमर्श और न्याय के क्षेत्र में बड़ी बातें की थीं. 2014 आम चुनाव से ही भक्तों ने उस भरोसे का बेड़ा गर्क कर दिया. बताइए ये तो भक्ति की पराकाष्ठा ही है ना कि महादेव की नगरी काशी में हर हर महादेव की जगह हर हर मोदी के नारे लगे! गंगा सफाई अभियान के झूठे दावे को सच मान लिया गया. देश की सत्ता हमें धर्म के नाम पर लड़ा रही थी, और भक्त उसे सनातन का आंदोलन समझ बैठे. लोगों की बुद्धि इस तरह कुंध गई कि नरेंद्र मोदी को अवतारी मान लिया.
क्या कभी महादेव को मोदी से रिप्लेस किया जा सकता है. जिस सांप्रदायिक सौहार्द को चार सौ सालों में अंग्रेज़ी हुकूमत नहीं मिटा पाई, उसे भक्तों की करतूतों ने जीर्ण शीर्ण कर दिया. 2014 के चुनाव प्रचारों में जुटे मोदीजी ने चिल्ला चिल्लाकर कहा कि कांग्रेस ने 2G स्पेक्ट्रम को प्राइवेट कंपनियों को सस्ते दामों में बेचकर बहुत बड़ा घोटाला किया? सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में पता चला कि ये एक डील ही थी. जिस कांग्रेस ने देश को सिर्फ लूटने का काम किया उसी के मार्स आर्बिटर मिशन का क्रेडिट लेने और अपने भक्तों के सामने महामानव बनने की इच्छा से फोटो सेशन करवाया.
2015 में डीडीसीए में बड़ा घोटाला सामने आया और अरुण जेटली के कार्यकाल में बड़े वित्तीय घोटाले की खबरें सामने आई! और ये बात सीबीआई की जांच में सामने आई. इस पर ना तो पीएम मोदी ने कुछ कहा और ना ही उनके भक्तों की प्रतिक्रिया आई. बल्कि जिस किसी ने भी फेसबुक ट्विटर पर जेटली के भ्रष्टाचार का खुलासा किया भक्त उसे गलियाते रहे.
भक्तों को लगा कि मोदी के पीएम बनने से देश में बड़ा बदलाव होगा. लेकिन इनके कार्यकाल में हिंदुत्व के मुद्दों के अलावा किसी विषय पर कोई जोर नहीं दिया गया. दो आर्थिक सुधारों नोटबंदी और जीएसटी के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार रसातल में दबती चली गई. औद्योगीकरण से पर्यावरण को बचाने के लिए जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं हुआ. प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़ को रोकने के लिए मोदी सरकार ने कोई रणनीति तैयार नहीं की, बांधों का मरम्मत नहीं करवाया. ग्रीन हाऊस गैसों के निपटारे के लिए भी भक्तों के महामानव मोदी जी ने कुछ नहीं किया!
क्रमशः…..
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