कहने को तो भारत को युवा भारत कहते हैं । लेकिन क्या यह प्रतिमान दिखाई देता है । जिस देश में युवाओं की आबादी ज्यादा हो , जिस देश को युवाओं का देश जैसा ख्याति प्राप्त हो । क्या उसे बुज़ुर्गो को लोकतांत्रिक व्यवस्था में नीति निर्धारण का जिम्मा देना ठीक हैं ।
और ऐसा भी नहीं है कि भारत के युवा इसके लायक नहीं है या काबिल युवाओं की कमी है भारत में । नहीं भाई ,ऐसा एकदम नहीं है । भारत की युवा पीढ़ी अपने काबिलियत का लोहा पूरी दुनिया से मनवा चुकी हैं । फिर ये लाचारी क्यों ? क्यों भारत का युवा इस बात को गंभीरता से नहीं ले रहा ?
राष्ट्रहित ,समाजवाद ,राष्ट्रवाद और जनहित ऐसे मुद्दे हैं जिनसे सतत् गति प्राप्त की जा सकती हैं । नेहरुजी ने पहली पंचवर्षीय योजना मे ही यह दावा किया था कि भारत की जनता को प्राथमिक सुविधाएँ मुहैया करायी दी जायेगी । लेकिन शायद आज मोदीजी को भी बिहार मे यहीं बातें या यूँ कहे कि खोखले वादे फिर से दुहराये जा रहे हैं ।