प्रकृति जीव – जंतु ,पेड़ -पौधे ,जल ,वायु , और धरती , पर्वत ,पहाड़ से मिलकर बना हैं । प्रकृति का जन्म अरबों वर्ष पूर्व हुआ था । सबसे पहले जल बना । इसके बाद जल से एककोशिकीय जंतु और फिर बहुकोशिकीय जंतुओं का निर्माण हुआ । फिर एक अनमोल वस्तु आया जो शायद जो हमारे जीवन के लिए हर पल प्रयास करता रहता हैं , जिसका नाम है वृक्ष । हमारा वजूद इसलिए है क्योंकि हमारे साथ प्रकृति हैं ।अगर एक पल के लिए इसने हमारा साथ छोड़ दिया तो शायद हम अपने वजूद को तलाशने में असफल हो ही जायेंगे । क्या बिना जल के मनुष्य जीवन की कल्पना कर सकता है ? क्या बिना जंगल के जीवन की बुनियाद बनाई जा सकती हैं , क्या बिना धरती के अन्न का उत्पादन और जीवन का शुभारम्भ हो सकता था ? सबका जवाब है नहीं ।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हम भी प्रकृति के ही भाग हैं । लेकिन शायद बुद्धिमान मानव बनते ही हम इतने बुद्धिमान बन गये कि हमें यह खयाल ही नहीं रहा कि हम उस प्रकृति से टक्कर लेने चल पड़े है । जिसने हमें एक प्रक्रिया के तहत जीवित रखने का पूरा प्रयास किया । आज प्रकृति से खिलवाड़ करने वाला कोई छोटा से बड़ा वैज्ञानिक प्राकृतिक आपदाओं के आते ही क्यों शांत हो जाता हैं ? आज दुनिया का कोई वैज्ञानिक क्यों कोई उपाय नहीं ला सकने में समर्थ हो पा रहा है? क्यों भूकंप आते ही दुनियाभर के वैज्ञानिक अपनी सूझबूझ दिखाने में अपने आपको असमर्थ पाते हैं ?
यह वही प्रकृति हैं जिसने हमारे हजारों कसूरों को माफ किया । हाँ ,हम कसूरवार थे क्योंकि हमने शायद यह सोचा ही नही कि हमारी हदे कहा तक हैं । हम जब विज्ञान युग में प्रवेश कर रहें थे तो शायद उपलब्धिया गिनाने की होड़ मे हम यह भूल गये कि इससे हमारा फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो सकता हैं । हमने हद से ज्यादा तरक्की की । इसमें कोई संदेह नहीं हैं । लेकिन तरक्की तब तक ही सही है जब तक फायदा हो रहा हो ।
मै बुद्धिमान मानवो से पूछना चाहता हूं कि क्या उनके पास इस प्रश्न का जवाब है कि ओज़ोन परत जो हमे ब्रह्माण्ड के नुकसानदेह किरणों से बचाती थी । उन्होने AC( वातानुकूलित ) लाकर उसे क्षति पहुँचाकर पूरी दुनिया पर संकट लाने की कोशिश नहीं की है । हमने केवल अपने हित को साधने के चक्कर में सभी प्रकार के जंतुओं ,वनस्पतियों और इस संरचना को ध्वस्त करने का प्रयास किया है । जो हमारे साथ-साथ पूरी पृथ्वी को ले डूबने मे सक्षम है ।