जातिवाद से तात्पर्य होता है कि किसी एक जाति के सभी लोगो द्वारा संगठित होकर किसी कार्य मे सहभागीदार बनना । लेकिन वर्तमान के सन्दर्भ मे इसके मायने ही बदल चुके हैं । आज केवल एक जाति विशेष के लोग तभी संगठित होते हैं जब कोई नेता उन्हें यह बताता है कि उन्हें एक होने की जरुरत हैं ।हम जातिवाद की बात सबसे ज्यादा चुनाव के समय करते हैं ।
जातिवाद ने जातीय सिद्धांत के अलावा भाई – भतीजावाद ,नस्लभेद और वंशवाद को प्रेरणा दी । इससे साफ सुथरा तो हमारा प्राचीन भारत ही था । क्योंकि उस समय जाति का आधार कर्म होता था । जैसा कि हम एक श्लोक के माध्यम से समझ सकते हैं –
।। जन्मना जायते शूद्रो: कर्मो भवति पंडित : ।।
इसका मतलब यह कि उस वक्त जाति निर्धारण का आधार जन्म न होकर कर्म होता था ।
अगर कोई जन्म से भले ही शूद्र वर्ग मे पैदा हुआ हो , लेकिन अगर कर्म से विद्वान है तो उन्हें ब्राह्मण ही कहेंगे ।।