भारत की परंपराओं को सजोये हुए , यह पर्व अपने आप में बड़ा ही निराला हैं । दीपावली का आगमन होते ही सभी छोटे बड़े मिलकर अपने घर को सजाते हैं । दूर दराज़ से लोग अपने घर आते है । शायद यह एक ऐसा पर्व है जिसमे सबकी सहभागिता जरुरी सी लगती हैं । अगर किसी कारणवश कोई नहीं आ पाता तो लोगो को अफसोस होता हैं । और लोग सोचते है कि काश वह हमारे साथ होते । दीपावली में दीप जलाने का कारण यह था कि अगर हम बाकायदा सरसो के तेल का दीप जलाते है तो पर्यावरण प्रदूषण कम होता हैं । लेकिन उमंग के चक्कर में हमने दीपावली का उद्देश्य ही बदल कर रख दिया ।अब हम पर्यावरण प्रदूषण कम करने की नहीं, उसके साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण को भी अंजाम देने पर तुले हुए हैं । अगर बात की जाय समझदारी की तो हम सबसे समझदार होने का दावा करते है लेकिन इस वक्त हमारा समझ शायद घास चरने चला जाता हैं । दीपावली में हमें बाकायदा सबसे मिलना चाहिए और अपने आचरण का प्रयोग करके सबका अभिवादन करना चाहिए । पुराने सारे गिले सिकवे भूलकर सबसे गले मिलना चाहिए । ऐसा कोई जगह छोड़ना नहीं चाहिए जहाँ शायद आप उजाला ला सकते थे परन्तु थोडे से लापरवाही से आप नहीं कर सके । अब चाहे वह कोई अंधेरा कोना हो । चाहे किसी के जीवन मे आप के न होने का अंधेरा हो । चाहे आप का कोई मित्र जो आप से थोड़ा नाराज़ हो । दीपावली इसीलिए ही है कि सबको अपना बना लिया जाये ।