मीडिया से लोगों का हमेशा एक विशेष प्रकार का जुड़ाव बना रहता हैं । अगर बात की जाय सैद्धान्तिक व्यवहार के तकाजे़ की तो यह एक माध्यम है , लेकिन जब बात होती है मीडिया के अवसरवाद की तो कहीं ना कहीं , ये अपने कार्यकुशल होने की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाता । और भटकाव के तमाम आसार बन जाते हैं ।
एक तरफ तो यह समाज के लोगो को हर नए वारदात से जागरूक करने का दावा करता हैं । तो दूसरी तरफ यह उस समय मौन हो जाता हैं , जब समाज और राष्ट्र को इसकी आवश्यकता बहुत जरूरी सी हो जाती हैं । क्या मीडिया की जवाबदेही यहीं समाप्त हो जाती हैं ?