हारने के बाद पछताना मत , जीत तुम्हारा ही होगा । क्योंकि यह हार एक विराम हैं , जीवन और कामयाबी का बड़ा ही अलग तरह का रिश्ता है । हर हार से सीखो , यह जो सीखा देता है ना, जीतकर कभी भी लोग उस पल को समझ ही नहीं पाते हैं । गिरना सिखो , सिखो गिरना । फिर गिर – गिरकर उठना सिखो । हर असफलताएं हमको आखिरकार कोई ना कोई नई सीख देकर ही जाती है , तो इस असफलता से इतना भय क्यों ? इस असफलता के बाद अपने उड़ान पर निर्भीकता बनाई जा सकती हैं , जो आपके कामयाब होने का द्वार खोलने में थोड़ा भी कसर नहीं छोडेगी ।
आत्मनिर्भर बनने के लिए लोगो को पतवार में फँसना ही पडता हैं क्योंकि पतवार या समस्या हमारे उस विशेष मार्गदर्शक के समान हैं जो अपने आप को उसकी कामयाबी में पूरी तरह लगा देता हैं ।
अगर आपके पास ऊर्जा है तो उसे किसी को दिखाने के लिए क्यों खर्च करते रहते हो । आप अपने अन्तरतम में छुपे हुए , उस निडर प्राणी से पूछकर देखो , वह कभी भी तुम्हारे हाँ मे हाँ नहीं मिलायेगा ।क्योंकि वास्तविकता यहीं है कि जब तुम उसका सम्मान नहीं करोगें , तो सामने वाले को क्या पडी़ है तुम्हारे सम्मान की । और उस वक़्त वह तुमसे ज्यादा अपने कार्य में निपुण हैं । तुम्हारा अंतर्मन तुमको सहारा तभी देगा , जब उसको तुम आभास करा पाओं की , तुम उसके साथ खडे़ हो । और अपनी धड़कन की सुनने वाले कभी भी नाकामयाब नहीं होते ।
तो बनावटी बनना छोड़कर बस अपनी धड़कन की सुनो ।