किसकी बात मानी जाये , मौजूदा हालात तो यही कह रहा हैं कि जो तस्वीर समाज की दिख रही हैं , वह समस्या के चपेट में आ चुकी हैं । राजनीति और उसका प्रभाव कितना पड़ा हैं ,यह देखा जा सकता हैं । जनता को आज तक तो प्राथमिक सुविधायें मुहैया नहीं हो पायी । राजनीति के मायने भी बदल गयें है , आज राजनीति का मतलब बस इतना ही रह गया हैं कि राजनेता कितनी चतुराई दिखा सकते हैं , कितनी चतुराई से आपको बहला सकते हैं । और कितनी चतुराई से जनता को मन की बात सुना सकते हैं ।
प्लूटो से लेकर दीनदयाल उपाध्याय तक , और नेहरु से लेकर मोदी तक आते – आते इतना तो स्पष्ट हो ही जाता हैं कि गणतंत्र इनके हिसाब से तो नहीं बदला वरन् गणतंत्र समस्या के चपेटे में जरुर आ गया । यें समस्या हैं – देश में आज भी ऐसे करोड़ो घर हैं जिन्हें दो जून की रोटी मुहैया नहीं हो पाती हैं । विविधता (Diversity) को अपना रुप – रंग मानने वाले भारत में चुनाव के समय बताया जाता हैं कि तुम हिंदू और वह मुसलमान हैं । क्या यहीं हैं गणतंत्र ?
आये दिन देश में बदहाली का माहौल बढ़ता जा रहा हैं , देश के एक बड़े तबके को आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा हैं । महिला सुरक्षा पर आज भी प्रश्नचिह्न क्यों हैं , आज भी भ्रूणहत्या , शोषण , दहेजहत्या जैसी घटनाएं क्यों जारी हैं । देश के युवा अपना दायित्व बस अपने तक सीमित रख रहें हैं ।
देखते हैं कि गणतंत्र की समस्या कब जाकर थमती हैं ।
Abhijit Pathak