वाणी , संकल्प , दृष्टि , कर्म , जीविका , श्रम , चिंतन , और ज्ञान ।
अगर इनमें आप शुद्धता रख सकते हो तो , दुनिया में इससे बड़ा कोई धर्म नहीं हैं । इसी के प्रयास से हम जीवन को सुखद बना पाने में सक्षम हो पायेंगे ।
वाणी – आपके सारे के सारे धर्म उसी वक्त आपका साथ छोड़ देते हैं , जब आप अपनी वाणी का प्रयोग केवल और केवल एक सहारा पाने के लिए कर रहे होते हैं । किसी के विचार से आप के विचार नहीं मिल रहे हो , तो आप उसके विरोध में अपनी वाणी का गलत प्रयोग करते हैं । और किसी दूसरे से उसकी बुराई भी करते हैं । लेकिन ठिक उसी वक़्त आपने अपनी वाणी की शुद्धता को खो दिया ।
संकल्प – जीवन में संकल्प की शुद्धता अपने आप में बड़ा रोचक होता हैं । अगर आप किसी काम को ठान ले तो , जब तक वह कार्य पूरा ना हो जाये । आप को आराम करने का कोई हक नहीं हैं । अगर आप अपने संकल्प के साथ खिलवाड़ करेंगे । तो एक समय ऐसा आयेगा कि आपकी परछाई भी आपके साथ चलने में कतरायेगी ।
दृष्टि – आपका किसी भी वस्तु , व्यक्ति और स्थान को देखने का क्या नजरिया हैं यह जाहिर कर देता हैं कि आप कितने हद तक और किस तरह का विचार रखते हैं । नजरिया बदलने की जरुरत ही नहीं पड़नी चाहिए । अगर आप दृष्टि में शुद्धता रखतें हो ।
कर्म – कर्म में शुद्धता रखना , अपने आप में एक बड़ा काम होता हैं । हमें कोई हक नहीं हैं कि हम अपना काम पूरा करने के चक्कर में किसी का भारी नुकसान कर दें ।
जीविका – आपको पूरा हक हैं कि अपने जीवन में सुविधाओं का भरपूर इस्तेमाल करे लेकिन इसकी शुद्धता , इसके प्रति ईमानदारी रख कर हो सकता हैं ।
श्रम – आपने किसी भी वस्तु को पाने के लिए भले ही कडी मेहनत क्यों ना की हो । अगर आपने जरा भी कोताही बरती होगी । तो आपको उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता हैं ।
चिंतन – चिंतन की शुद्धता तब मानी जाती हैं जब आपको यह एहसास हों कि आप हमेशा चिजों को आशावादी (optimist) बनकर सोच रहे हैं ।
ज्ञान – ज्ञान हमेशा प्रकाश के समान होता हैं । लेकिन अगर हम पूरी तरह से चिजों के बारे में नहीं जानते हैं तो इसमें विवाद का दखल हो ही जाता हैं ।
Abhijit Pathak