बड़ा बनने के लिए सबसे सहमति बनानी पड़ती हैं , लोगो में अपना जगह बनाना पड़ता हैं । बस केवल अपने मन की करनी हों या केवल और केवल अपनी चलानी हो तो बड़े बनने का आस छोड़ देनी चाहिए । मै यहाँ धन में बड़ा होने की बात नहीं कर रहा हूं । हिन्दी के बिहारीलाल जो गागर में सागर भरने के सिद्धहस्त हैं । उन्होनें एक पद में कहा था कि ” बड़े न हूजै गुनन बिन ” यानि जब तक आदमी को उसमें विशेष क्या हैं , नहीं पता होता वो बड़ा नहीं हो सकता । बड़े होने और बनने में धरती आसमान का फासला हैं ।
सबसे पहले तो उसे सबमें घुलना आना चाहिए ।
Abhijit Pathak