राजनेता जितना मन चाहे उतना दावा कर सकते हैं कि वे राजनीति में व्यवहारवाद का समर्थन नहीं कर रहें है , मगर सचाई यहीं है कि आज भी जब चुनावी दंगल का बिगुल बज रहा होता हैं , वे अपने करीबियों को ज्यादा पास लाने की भरपूर कोशिश करते हैं । यह सिलसिला इस कदर बढ़ता चला जा रहा हैं कि कुछ ऐसे भी लोग है , जिन्होंने यह प्रतिज्ञा कर ली हैं कि जब तक अपने पूरे परिवार को राजनीति की धाक में जमा नहीं लूंगा , तब तक सांस नहीं लेने वाला । आप गाँधी राजनैतिक व्यवहारवाद के परिवारवाद से वाकिफ़ होंगे ही , जिसमें नेहरु से चलायमान सिलसिला आज राहुल गाँधी तक आ चुका हैं ,इसे लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजाओं जैसा खेमा देखने को मिला । जिसमें कुछ ऐसा भी देखने को मिला कि राजा का उत्तराधिकारी उसका बेटा ही होगा , लेकिन इससे भी कहीं ज्यादा सफल हुए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव हैं , जिन्होंने यह तय कर रखा हैं कि मेरा पूरा परिवार ही राजनीति करने में सक्षम हैं । राजनैतिक पारिवारिक व्यवहारवाद में ये सबसे आगे हैं । इन्होने नेहरु की मुहिम को काफी पीछे छोड़ दिया ।
Abhijit Pathak