यह कह देना बड़ा आसान है कि सरल हिन्दी का प्रयोग होना चाहिए ,लेकिन कितना लुप्त करोगे हिन्दी को । पहले टीकायें ग्रन्थों पर लिखे जाते थे। फिर किताबों की समीक्षा होने लगी ,अब टिप्पणी करते करते लोगो को comment शब्द मिल गया । हिन्दी का पतन हम खुद करते जा रहे हैं , और अध्ययन से बचने के लिए सारी जिम्मेदारी कठिन बनाम आसान पर थोपते जा रहे हैं । अगर कल को आसान ढूंढने की चक्कर में हमारे पास हिन्दी बची ही नहीं तो कौन जिम्मेदार होगा ।
देश के जिम्मेदार और बौद्धिक लोगो मुझे बताओं हिन्दी के वजूद के साथ तुमने कितना खिलवाड़ किया ।
Abhijit Pathak