मेरी आदत है मै जब तक किसी व्यक्ति ,बिषय और स्थान के बारे में पूरे तरीके से नहीं पढ़ लेता ,जाहिलों की तरह उस पर टिप्पणी करना शुरु नहीं करता । कुछ लोग बेवजह की अकड़ को पाल लेते है और बिना बिषय को जाने ही दूरदर्शिता के अपार समुद्र को लांघने की कोशिश करते है।
अंबेडकर से असहमति इसलिए है क्योंकि उन्होनें शूद्रों का हित नहीं किया बल्कि देश में ढंग की राजनीति की । यह राजनीति क्या रंग ला रही है आज देखा जा सकता हैं ।
हिंदू धर्म पर उंगली उठाने वाले अंबेडकर की बातों से मै इसलिए सहमत नहीं हूं क्योंकि उन्हीं की देन है कि आज दलित हैं ।
मै तो कहता हूं कोई दलित क्यों बने, दलित शब्द क्यों बना पड़ा है भारतीय परंपरा में । आज अगर जातीय राजनीति हो रही है तो कही ना कहीं अंबेडकर भी इसके सहभागीदार है।
मेरे विचार तब अंबेडकर के साथ होते जब अंबेडकर का कारनामा कुछ ऐसा गुल खिलाया होता कि आज दलितों की बस्तियों को उजाड़ने के लिए लोगो को सोचना पड़ता ।
जो नेता अंबेडकर जयंती पर दलितों पर सहानुभूति दिखाते है ,अगर देश के दलितों मे एकता का सूत्रपात होता तो वही नेता इनके बचाव के लिए भागे आते।
लेकिन अफसोस अंबेडकर को जो करना चाहिए वह उन्होनें नहीं किया और अंबेडकर भक्त इतने है कि देश से दलित शब्द निकालने में बड़ा समय लगेगा ।
भाई कोई ये ना समझे की मै भारत से दलितों को निकालने की बात कर रहा हूं बल्कि किसी को जरुरत ही नहीं होनी चाहिए कि दलित बन किसी के भी द्वारा अपमान सहे।
जब अपना पराया में से,
पराया हट जायेगा ।
भारत को आगे बढ़ने से ,
कोई भी रोक ना पायेगा ।।
Abhijit Pathak