राजनैतिक परंपरा मे यह घटना आम हो गई है कि कल को जनमत हासिल करने वाला नेता जनगद्दार बन जाता हैं । अगर कोई नेता है और वह घोटाला करने के बाद भी नेता बना पड़ा है। तो सीधे तौर पर यह जनतंत्र का विरोध है। हमारे देश में प्रथायें मिटी लेकिन जड़ जमीं रह गई, आज स्थिति यह है कि वह पनप रही है ।
धार्मिक परंपराये धर्मनिरपेक्षता के अंदर आ गई ,देश में इस बात की स्वतंत्रता दे दी गई कि सबको अपना धर्म अपने हिसाब से चलाने की अनुमति है। अब धर्म की आड़ में राजनेताओं ने भारत की अखंडता और एकता को चकनाचूर कर देश को हिन्दू ,मुस्लिम ,सिख, ईसाई में बांट दिया ।
देश की पवित्र और पाख राजनीति केवल और केवल धर्म ,जाति और क्षेत्र की मुहरे बनी और यहीं तक सिमट कर रह गई । सवाल यह है कि जनमत हासिल कर जनतंत्र का विरोध क्यों ?
Abhijit Pathak