२५ दिसम्बर १८९१ की बात है, मुम्बई में ‘अमेरिका-इंडिया थिएटर’ में एक विदेशी मूक चलचित्र “लाइफ आफ क्राइस्ट” दिखाया जा रहा था और दादासाहब भी यह फिल्म देखने गये थे। चलचित्र देखते समय दादासाहब को प्रभु ईसामसीह के स्थान पर कृष्ण, राम, समर्थ गुरु रामदास, शिवाजी, संत तुकाराम जैसे लोग दिखाई दे रहे थे।
उन्होंने सोचा क्यों नहीं चलचित्र के माध्यम से भारत के महान लोगो को दिखाया जाए। उन्होंने इस चलचित्र को कई बार देखा और फिर क्या उनके दिमाग में चलचित्र से भारत को दिखाने की होड़ घर कर गई। फिर क्या भारतीय परंपराओ की सच्चाई , काम करने के पीछे की ईमानदारी दिखाना इन सारी चिजों को इन्होने अपना जिम्मा मान लिया और अपनी जिम्मेदारी को जिकना बन पड़ा निभाया।
आज दादासाहेब फाल्के का जन्मदिवस है, फिल्में आज हिन्दी फिल्मे आसमान छू रही है तो इसका पूरा श्रेय फाल्के जी को ही है। क्योंकि आगे ले जाने से महत्वपूर्ण होता है शुरुआत करना।