यमुना की सफाई का खुला नजारा आज देखा जा सकता था. यह आयोजन यमुना के तट पर ही था . परियोजना का नाम था नमामि गंगे परियोजना . इसमें शिरकत करने वाले जन समर्थकों का नाम था उमा भारती और दिल्ली सरकार के नदी सफाई के दावेदार कपिल मिश्रा. आश्चर्यजनक बात ये थी की इस समायोजन को एक साथ दिल्ली सरकार और भारत सरकार मिलकर आगे बढ़ा रहे थे . आपको बता दे की इससे साबित यही होता है की एक दूसरे को न भाने वाले लोग एक साथ आकर देश के आमजन को यह बता रहे थे की जो काम या जिस नदी की सफाई का एक प्रयास एक बार किया जा चुका है और इसमें 2000 से ज्यादा रुपये खर्च किये जा चुके है लेकिन कोई खासा प्रभाव नहीं दिख रहा है तो क्या अब 700 करोड़ में यह काम संभव हो सकता है .
बात ये नहीं है की कौन कितना जिम्मेदार है , सवाल यह है की अपने आपको नेता कहने वाले लोग अपनी जिम्मेदारियों को भली भांति पूरा न करके केवल अपनी लापरवाही ही नहीं दिखाते बल्कि जनता के जेब के पैसे की बर्बादी कर रहे होते है.
अगर कोई सत्ता या सरकार देश की जनता के हित को समझे बगैर कोई काम कर रहा है तो इसे क्या कहा जा सकता है . सवाल ये है की जब एक बारी आपने जनता का 2000 करोड़ रुपये बर्बाद करके कुछ हासिल नहीं किया तो आपको कोई अधिकार नहीं है की आप अपनी पुरानी गलती को एक बारी फिर से दुहराने की पात्रता रखते है .