पानी : संरक्षक का संरक्षण बेहद जरुरी


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आफत ,कहर ,संकट या गहरी विपत्ति भूजल के पानी की कम होने की। प्राकृतिक संपदा का किरदार निभाने वाला पानी किस हद तक उपयोगी है यह बताने की जरुरत नहीं है। गाँधी और विनोवा की माने तो पानी साझा संपत्ति है । आज के नेता बूँद बूँद को मोहताज जनता को पानी उपलब्ध कराना छोड़कर इसी बहाने अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुए है । पानी का महत्व आज से कितने समय पहले ही रहीमदास ने बता दिया था कि रहिमन पानी राखिए .

 

हर जगह जल संकट की चर्चा

इन दिनों कोई भी अखबार उठा कर देख लीजिए, उसमें खबरे-आम होगी भारत के जल संकट की। संभवत: आधुनिक भारत अपने इतिहास के सबसे बुरे जल संकट से जूझ रहा है। सरकारों के लिए यह लगभग नामुमकिन सा हो गया है कि वे खेती-बाड़ी, घरेलू व औद्योगिक इस्तेमाल के लिए पर्याप्त पानी की उपलब्धता सुनिश्चित कर सकें। 

 

मानसून ने भी छोड़ा साथ
सभी जानते हैं कि पिछले दो साल यानी 2014 और 2015 में भारत पर मॉनसून की मेहरबानी नहीं हो पाई जिसके चलते देश के बांधों और जलाशयों का जल स्तर मानक से बहुत नीचे रहा। महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में तो कई क्षेत्रों को सूखाग्रस्त घोषित किया ही जा चुका है अब दिल्ली व मुंबई जैसे महानगर भी जलापूर्ति में तंगी से दोचार हो रहे हैं।

जल संरक्षण की जरूरत 

भारत में पानी की कहानी खुशनुमा नहीं है। बड़े पैमाने पर जमीनी पानी बरबाद किया जा रहा है, जितनी उसकी रिचार्ज की क्षमता नहीं है उससे कहीं ज्यादा पानी जमीन ने ऊपर खींचा जा रहा है। शहरों और गांवों में पानी की मांग के मुद्दे भी मुंह खोले खड़े हैं तथा स्रोत बनाम संसाधन का संघर्ष भी जारी है। इन मुद्दों को सुलझाने की राह में न केवल बेशुमार पेचीदगियां मौजूद हैं बल्कि नीतिगत उलझाव भी अवरोध बने हुए हैं।

देश में जल-संकट की गंभीरता को समझते हुए सरकारों को जल संरक्षण की बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी। उदाहरण के लिए वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट पानी बचाने की कवायद में काफी कारगर साबित हो सकता है। गौरतलब है कि पहले दर्जे के शहरों में वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट की क्षमता 30 प्रतिशत है, जबकि दूसरे दर्जे के शहरों में यह क्षमता महज 8 प्रतिशत है। जिन अन्य तरीकों को अमल में लाया जा सकता है उनमें शामिल हैं- वाटर ऑडिटिंग, डिप व स्प्रिंकलर से सिंचाई पर प्रोत्साहन राशि और बारिश के पानी के संचय के लिए टैंक आधारित संरक्षण मॉडल को अपनाना।

राजस्थान से सीखने की जरूरत 

राजस्थान भारत का रेतीला हिस्सा  है, देश का 10.4 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र यहां है और 5.5 प्रतिशत आबादी यहां बसती है; देश भर में सतह पर जितना भी पानी उपलब्ध है उसका केवल 1.16 प्रतिशत यहां पर है। जाहिर है कि राजस्थान का शुमार देश के सबसे सूखे प्रदेशों में होता है और यहां बारिश51127692 का पैटर्न बहुत अनियमित है तथा अलग-अलग इलाकों में होने वाली वर्षा में काफी फर्क भी है जैसे एक ओर जहां जैसलमेर में सालाना 100 मिलीमीटर बारिश होती है वहीं दूसरी ओर झालावाड़ में यह आंकड़ा 800 मिलीमीटर का है। साल भर में जो 16.05 अरब क्यूबिक मीटर बरसात होती है उसमें से करीबन 4 अरब क्यूबिक मीटर बर्बाद हो जाता है क्योंकि उसे सतही भंडारण और जलवाही स्तर को रिचार्ज करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसीलिए इस बात की जरूरत है कि चार किस्म के पानियों के संरक्षण के लिए विभिन्न योजनाओं को एक मंच पर साथ लाया जाए; ये चार किस्म के पानी हैं: वर्षा जल, सतही जल, भूजल एवं मिट्टी की नमी।

राजस्थान सरकार का ‘मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान’ (एमजेएसए)

ज्यादा से ज्यादा जितना संभव हो इन्हें बचाने की योजनाओं को अमल में लाया जाए ताकि प्रभावी नतीजे मिल सकें। सरकार ने ‘मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान’ (एमजेएसए)आरंभ किया है, यह ग्रामीण क्षेत्रों में चलाया जाने वाला देश का सबसे बड़ा जल संरक्षण अभियान है‘एमजेएसए’ में कई विशेषताएं हैं- पहली तो यह कि इसमें सभी संबंधित विभागों की गतिविधियों को जोड़ा गया है। विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बनाते वक्त जब सर्वेक्षण किया गया था तब यह तय किया गया कि एमजेएसए के तहत सभी विभाग कौन-कौन से कार्य करेंगे।

इस योजना के कार्यक्रम को संपूर्ण वाटर बजटिंग के आधार पर बनाया गया है, और इसके लिए वैज्ञानिक सर्वेक्षण किए गए तथा यह पता लगाया गया कि पानी की कितनी जरूरत है व कितने संसाधन उपलब्ध हैं। इस अभियान के जल संरक्षण के विविध तौर-तरीकों की योजना बनाई गई है जैसे-मिनी पर्कोलेशन टैंकों के साथ रिज से घाटी तक कैचमेंट ट्रीटमेंट, धाराओं के पहले व दूसरे स्तर पर खाईयां, ऊंची धाराओं पर जल भंडारण के ढांचे जैसे टैंक, नहरें, पेयजल हेतु पाइपलाइन, चैक डैम, जंगल लगाना, फील्ड बंडिंग, खेतों में पोखर, पारंपरिक टांका, वृक्षारोपण व चारागाहों का विकास।

उम्मीद है कि सरकार व लोगों के सम्मिलित प्रयासों और संसाधनों तथा इस ध्येय से जुड़े सभी पक्षों के संकल्प की बदौलत यह पहल पूरे राय में एक सफल अभियान बनेगी। राजस्थान की यह पहल एक शुभ संकेत है क्योंकि जल ही जीवन है, और राजस्थान का यह मॉडल बाकी देश के लिए एक मिसाल बनेगा .

अगर तीसरा विश्वयुद्ध होगा तो वो पानी और ऊर्जा के लिए होगा ,हमे एक साथ आकर पानी को बचाने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है.

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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