पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजों पर कांग्रेस के मनोबल को दाज दे रहा हूं । अरे भाई सबके बस की बात नहीं है एक साथ इतना कुछ सहन कर पाना । 2015 के पूरे साल में इसी बात की बहस हो रही थी कि देश असहनशील और असहिष्णुता की कगार पर पहुंच चुका है लेकिन आज राहुल गांधी की सहिष्णुता और सहनशीलता का लोहा सबको मानना ही चाहिए।
वो कहते है ना कि मन के हारे हार और मन के जीते जीत, बस यही अवधारणा कांग्रेस ने अपनाया और इस करारी शिकस्त और हार को मानसिक जीत समझ बैठी है। खैर इसमें कोई बात नही है ऐसा नजरिया और हौसला सबके बस का नही। राहुल गांधी के ऐसे हौसले को नमन जो चुनावी हार को भी अपनी मानसिक जीत समझ रहे है।
लेकिन देश के बड़े शिक्षाविदो और पत्रकारों की माने तो वे ये आरोप लगा रहे है कि भारतीय जनता पार्टी अपनी बातो से मुकर गई है क्योकि इसने कहा था कि अपने किये वादे पर खरा उतरेगी और देश मे अच्छे दिन आयेंगे लेकिन इसने कांग्रेस के अच्छे दिन का खात्मा कर दिया उसे चुनाव में हराकर।
अगर बात करे पश्चिम बंगाल की तो ये साफ जाहिर हो रहा है कि एक बारी फिर से ममता ने चर्चित पत्रिका आनंद बाजार की उम्मीदो पर पानी फेरने का काम किया है। क्योंकि दीदी और पत्रिका के बीच बहुतै मतभेद है।
एक खुशखबरी ये है कि अब असम की बागानों में चायवाले ने अपनी जड़े जमा ली है शायद अब उम्मीद की एक किरण यह दिखाई दे रही है कि प्रधानमंत्री वादो का चाय जनता को कड़ी और हरी पत्तियों का देने में कामयाब होंगे।
भाई अम्मा की दादागिरी को मानना पड़ेगा जबरदस्त वापसी।
Abhijit Pathak