सबसे पहले बात की शुरूआत होती हैं कि कैसे आप एक उम्दा या दूसरे शब्दों मे प्रेरक ,प्रभावशाली और महत्वपूर्ण लेख लिख सकते है और हमें जरुरत किस बात की होती है जिसे ध्यान में रखकर इसे लिखा जाये । जवाब था स्वतंत्र चिंतन ।
जब हम अपने इन्द्रियों का सहारा लेकर उस पथ की तरफ आगे बढ़ रहे होते है जिससे हमारे द्वारा या हमारे किये गये कार्य से समाज में कुछ बदलाव हो लोग उन बातों पर सोचने को मजबूर हो जाये और साथ मे अपने विवेक का सहारा लेकर ये भी बताये कि इस समस्या से कैसे बचा जा सकता है और इसका क्या रास्ता निकल रहा है। समाज में आज के जो आलोचक बन रहे है उन्हें भले ये ना पता हो कि आलोचना होती क्या है । वे लोग अपनी आलोचना में टिप्पणी लिखते है और कहते है कि वे बहुत बड़े आलोचक है।
इसको समझने के लिए हमें ठीक तरह से पूरी बात को समझना पड़ेगा । मैने कई बार कहा है कि अतीत में झांके बगैर ना हम वर्तमान पर चर्चा कर सकते है और ना ही भविष्य को संवार सकते है। इसलिए एक बार फिर मुझे इतिहास के पन्नों में गोते लगाने जाना ही पड़ेगा ।
जब बहुत पहले ग्रन्थ लिखे जाते थे तो उस समय जो व्यक्ति सबसे विद्वान समझा जाता था उसे यह अधिकार दिया जाता था कि वह उस ग्रन्थ की अच्छाई और खूबी पर टीका लिखे ।
यह बहुत पुरानी बात हो गई ,लेकिन आगे चलकर यह सिलसिला थमा नहीं एकदम इसी तरह ही अपने समय का सबसे बड़ा आलोचक किताबों की समीक्षायें करने लगा । समय बदला अब लोग किसी व्यक्ति विशेष पर आलोचना करने लगे और इस बात को कहकर मै गर्व का अनुभव करता हूं कि हमारे यहाँ के ही आलोचक सम्राट रामचंद्र शुक्ल ने आलोचना पर बड़ा काम किया आज के लोगो से अनुरोध है कि आलोचना कैसे करते यह सीखने के लिए आलोचक सम्राट का सहारा ले और अपनी लिखी हुई टिप्पणी को भूलकर भी आलोचना का नाम ना दे ।
आदमी हालात और उद्देश्य से थक हारकर बैठ जाता है और बस एक चीज़ का बहाना बना लेता है मजबूरी।
दूसरा प्रश्न था कि भाषा प्रवाह को कैसे बेहतर किया जाये तो उन्होनें कहा कि इसके लिए तुम्हें दर्शन का सहारा लेना चाहिए।
दर्शन का मतलब यह है जो दिखाई दे, जो दृश्य हो ।
मैने इस छोटे से वार्तालाप से बहुत कुछ सीखा ।
धन्यवाद सर इतना कुछ समझाने के लिए ।
Abhijit Pathak