कबीर एक समाजसुधारक थे लेकिन इसी समाज ने एक समय उनकी बातों को नहीं माना था। कबीर ने कभी भी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं किया लेकिन आज उनकी लिखी लाइनों पर कितने सारे रिसर्च होते रहते है। कबीर ने त्याग की पराकाष्ठा को लिखा । कबीर ने जगत को मिथ्या कहा ।कबीर ने धर्म को आडम्बर कहा। कबीर ने गुरु को ईश्वर से बड़ा बताया । कबीर ने हमेशा सत्य कहा । कबीर का कहा आज हमें सोचने पर मजबूर कर देता है। कबीर ज्ञानमार्गी शाखा के कवि है।
अगर सारे धर्मो की नींव वास्तव मे सत्य से ढाली गई है तो कबीर की बातें सभी धर्मो को क्यों नहीं भाती है। आखिर क्यों कबीर की बातों को मानने से कतराते है आज के धर्मानुयायी ।
क्या ये जताना गलत नहीं है कि एक तरफ आप कबीर को विद्वान कहते हो और दूसरी तरफ धर्म पर उनकी कही बातों को नजरअन्दाज करते जा रहे हो।
कबीर ने कहा था कि मस्जिद में अल्लाह चिल्लाने से अल्लाह नहीं मिलेगा इसके लिए आपके कर्म अच्छे होने चाहिए । इसी के साथ कबीर ने ये भी कहा था कि पशुओं को मारने की सलाह जो धर्म दे सकता है उसे कोई हक़ नहीं की वो अपने आपको धर्म कह सके।
उन्होनें ये भी कहा था कि भगवान अगर कण-कण में समाये हुए है तो आखिरकार क्या जरुरत किसी एक पत्थर की पूजा करने की,अगर ईश्वर पत्थरों में है तो मै पहाड़ तक को पूजने में कोई कसर नहीं छोडूंगा।
कबीर ने हमेशा अपनी लेखनी से समाज को आइना दिखाना चाहा ,लेकिन शायद इस समाज को सत्य और ज्ञान की बात करने वाले लोग भाते ही नहीं है।
कबीर ने प्रेम पर जो लिख दिया अगर आज के लोग उसका मार्गदर्शन ले तो प्रेम के सही मायने होते क्या है और प्रेम है क्या? इससे वाकिफ हो सके।
कबीर जो लिखते थे उसे पहले वह प्रायोगिक रुप में कर चुके होते थे। गुरु की महिमा लिखने में उन्होनें यहीं बताना चाहा कि जब तक हमें ये आभास नहीं होता कि गुरु श्रेष्ठ है तब तक हम ज्ञान अर्जित नहीं कर सकते।
Abhijit Pathak