14 साल के बाद गुलबर्ग पर जो फैसला आया है, उससे ये साफ जाहिर हो रहा है कि गुलबर्ग हत्याकांड के खड्यंत्रकारियों को बाकायदा सबक नही मिल पाई है – जाकिया
वाकया-
27 फरवरी को जब गोधरा कांड में ट्रेन की दो बोगियां जला दी गई थी, उसके एक दिन बाद ही 20,000 से ज्यादा लोगों की हिंसक भीड़ ने 29 बंगलों और 10 फ्लैट वाली गुलबर्ग सोसायटी पर हमला किया था, इस सोसायटी में केवल एक पारसी परिवार के अलावा सारें मुस्लिम परिवार रहते थे. इस हमले के दौरान 69 लोगों की हत्या हुई थी. इसमें पूर्व कांग्रेसी नेता एहसान ज़ाफरी की भी हत्या की गई थी. ये एक साजिश नहीं तो और क्या थी. इस मामले के 66 आरोपी थे जिसमें भाजपा के असारवा के काउंसलर बिपिन पटेल भी थे. इसमें से चार आरोपियों की मौत ट्रायल के दौरान ही हो गई थी. 9 आरोपियों को छोड़ दिया जाए तो इसके अलावा सभी आरोपी ज़मानत पर बाहर है. इस मामले में 338 गवाही दर्ज हो चुकी है.
ये मुद्दा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि एहसान जाफरी की विधवी ज़किया जाफरी ने 8 जून 2006 को पुलिस को एक फरियाद दी जिसमें इस हत्याकांड के लिए नरेन्द्र मोदी, कुछ मंत्रियों और पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया. पुलिस ने उस वक्त इस फरियाद को नामंजूर कर दिया था. 7 नवंबर,2007 को भी गुजरात हाईकोर्ट ने भी इस फरियाद को एफआईआर मानकर जांच कतवाने से मना कर दिया था. लेकिन इन परिस्थितियों के बावजूद ज़किया ने हिम्मत नही मानी.
26 मार्च, 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के लिए एसआईटी बैठाया जिसमें सौभाग्य से गुलबर्ग का भी मामला आ गया. अब जकिया को लगा कि शायद उसे इंसाफ मिल सकता है. कोर्ट ने सारा जिम्मा एसआईटी को सौपा. 27 मार्च 2010 को नरेन्द्र मोदी का समन किया और पूछताछ की. 10 अप्रैल 2012 को एसआईटी की रिपोर्ट ने यह माना कि मोदी के साथ अन्य 62 लोगों के खिलाफ कोई सबूत नही है.
फैसला
गुजरात में 2002 दंगे के दौरान गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड पर गुरुवार को स्पेशल कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। 24 लोगों को दोषी करार दिया गया है और 36 लोग बरी कर दिए गए।