आज 5 जून है, पर्यावरण दिवस. भारत में पर्यावरण का खयाल रखने के लिए जमीनी स्तर पर क्या काम हुआ है. हाँ इतना तो जरुर कहूंगा कि प्रधानमंत्री को इस दिन ने सुबह सुबह ट्वीट करने पर मजबूर कर दिया. कई बार होता क्या है कि हम सामने कचड़ा देखकर रास्ता बदल लेते है या उस तरफ देखे बगैर निकल लेते है या फिर ऐसा करते है कि आंखें बंद कर वहाँ से ऐसे निकलते है जैसे कि कचड़ा भी ना लगे और हम साफ रहने का तमगा भी पहने रखे. तो सरकार ने पर्यावरण से जुड़े मसलों पर ठीक तीसरे तरह का रुख अपना रही है. औद्योगीकरण की धुन धरती को नंगा कर दिया, शहरीकरण में जब गांव से काम की तलाश में शहर की तरफ आये तो हमे ऐसा लगा कि बदलाव हो रहा है. लेकिन शहर बसते समय ना जाने कितने जंगल काट दिये गये जिसका सही सही आंकड़ा आसानी से नहीं मिल सकता.
समस्या यह थी कि जनसंख्या विस्फोट को समझकर भी हमें पर्यावरण का मोह नहीं रहा. हमने जीवन के बुनियाद जंगल को उजाड़ना अपना घर बसाना समझ लिया.
विज्ञान ने हमको बदला लेकिन साथ ही साथ विज्ञान ने अगर जीवनशैली को बदलने का काम किया तो दूसरी तरफ इसने सूर्य के पराबैंगनी किरणों से बचाने वाले ओज़ोन लेयर को नुकसान पहुँचाया, उन लोगो को पर्यावरण पर बात करने का क्या हक है जो वातानुकूलित में बैठकर पर्यावरण में क्लोरोफ्लोरोकार्बन की मात्रा को बढ़ा रहे है लेकिन वे अपनी पहली दावेदारी रखना अपना हक़ समझते है.
आज के दिन अगर प्रधानमंत्री को पर्यावरण के लिए कुछ अलग हटकर करवाना चाहिए था तो वो ये होता कि एक साथ कम से कम एक करोड़ वृक्ष लगवाकर एक मिसाल बनाने का प्रयास करना चाहिए था.
Abhijit Pathak