#अभिजीत
क्या योग की सफलता तब हो गई जब साल भर में इसे दुनिया ने एक दिन दे दिया, या फिर देश की पुरातन उपलब्धियां इसके सामने छोटी पड़ गई। कही ऐसा तो नहीं दुनियाभर को योग सिखाने वाला विश्वगुरु भारत अपनी नई उपलब्धि पर पुरानी उपलब्धि जोकि इससे कहीं ज्यादा महत्व रखती है उसे नजरअन्दाज कर के अपनी महत्ता को रख रहा है, क्या अब मान लिया जाये कि नींव की ईट को तवज्जो ना देना भारत का वर्तमान सुनिश्चित कर चुका है।
तो फिर क्यों योगेश्वर भगवान कृष्ण और योग प्रचारक पतंजलि का नाम ना लेकर योग और भारत के सहसंबंध को बताने खातिर प्रधानमंत्री मोदी और बाबा रामदेव के छोटे से प्रयास को गिनाकर योग को लज्जित किया जा रहा है।
बुरा ना मानिए योग के लिए दिन रात एक करने वाले योग प्रचारक हुए जिन्होंने भारत की निपुणता सबके सामने रखा और एक किर्तिमान बनाया।
वैदिक परंपराओं को बचाने का बार-बार हवाला देने वाले रामदेव उसी परंपरा को ताक पर रख देते है जब योग के पेटेंसी की बातें होती है. सवाल ये है कि योग और वैदिक सभ्यता को फिर से देश मे लाने वाला योग ऋषि अगर ये भूल जाये कि योग का प्रारम्भ किसकी देन है तो सवाल बनता है. मुझे तो शिव जैसा योगऋषि कही दिखाई ही नही देता जिसने योग का प्रचार पृथ्वी पर ही नही बल्कि एक साथ तीन-तीन लोको तक पहुंचाया था. योग प्राचीन भारत को बतानी नहीं पड़ी थी, बड़े-बड़े विद्वान योग के लिए जब दिन-रात एक कर देते थे. उनका जिक्र छोड़िए पतंजलि, जिनके नाम का तबका लेकर रामदेव योग को भारत में भुना पा रहे है. एजेंडा क्या है इनका कुछ समझ नहीं आता है.
मेरा मकसद ये बिल्कुल नहीं है कि योग औऱ योग से रामदेव का जुड़ाव ना रहे, बिल्कुल रहे लेकिन मै इस वक्त कैसे शांत रहूं जब कोई ये कहे कि प्राचीन भारत से ज्यादा उपलब्धि 21वीं सदी ने अर्जित कर ली है.

Abhijit Pathak