धर्म की पाबंदियों को तोड़ देने की जरुरत

क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि सुबह गंगा में डुबकी लगाई जाये, प्रार्थना के लिए मस्जिद में नमाज़ अदायगी हो, संध्यावंदन के लिए गुरुद्वारे जाया जाये और अध्यात्म की सीख चर्च में मिले.
धर्म का मतलब है जिसे कोई इंसान स्वेच्छा से अपना सके, धर्म की पाबंदी किसी के द्वारा किसी के ऊपर थोपी नहीं जानी चाहिए.
राष्ट्रवाद एक तरह से धर्म ही हुआ, जिसपर सारे धर्मों का अधिकार है, इसे कोई भी किसी समय बेरोकटोक के अपना सकता है. राष्ट्रवाद  को अपना सब कुछ मानने वाले लोगो को धर्म की पाबंदियों को तोड़ देना चाहिए. हमारे दिल में जितना सम्मान एक मन्दिर के लिए हो उतना ही मस्जिद, गुरूद्वारे और चर्च के लिए भी होना  जरुरी है. आज जरुरत है भारत को एक गट्ठर बन जाने की. क्यों ऐसा नही हो सकता कि हम अगर हिन्दू है तो भगवान के दूसरे रुप अल्लाह के लिए गाली बकते है किस गीता में लिखा है कि सत्व और रज गुण को त्यागकर हम तमोगुणी बन जाये. हाथ वहीं उठाता है जिसके पास बोलने को कुछ ना हो और गाली वे लोग ही देते है जिनका  अच्छे शब्दों से पाला नहीं पड़ा होता है. अच्छे शब्दों से उन्हीं का पाला नहीं पड़ा होता है जो बुनियादी काम को ना करके उसके इतर दुनियाभर का सारा काम किये होते है.
ये बात मै मुसलमानों से भी पूछ रहा हूं कि किस कुराने शरीफ़ में लिखा है कि अल्लाह के दूसरे रुप भगवान को भला बुरा कहा जाये और अपने समकक्ष सभी वन्दों से मारकाट की मूर्खता को मजहबी दंगा का नाम दे दिया जाये.
अब मजहबी दंगो और कर्फ्यू के लिए किसके पास वक़्त है. कौन चाहता है कि ये खूनखराबा हो. जब तक शिक्षा समाज की रूढ़िवादी विचारों का खात्मा नहीं कर लेती तब तक समाज में मजहबी दंगे होते रहेंगे. समाज का माहौल बार-बार बिगड़ेगा जिसकी जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं होगा.
अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किजिए.

Abhijit Pathak

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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