विकास का मतलब उन्नति , प्रगति , कल्याण और सुखद जीवन की तरफ जाना है. विकास तब जाकर सही दिशा में माना जाता है जब यह पता चले कि किसका रुझान किस कार्य के प्रति और वहीं किसी की अभिरूचि किस कार्य के साथ हैं. जिस प्रकार एक अच्छे क्रिकेट के जानकार को फिल्मों से जुड़ा लेख लिखने के लिए कह दिया जाये और मनोरंजन में दिलचस्पी रखने वाले का बिषय क्रिकेट का लेख हो तो विकास कार्य में रुकावट पैदा हो जाता हैं.
20वीं सदीं में एशिया और अफ्रीका ने राजनीतिक जीत प्राप्त किया. यहां के रहने वालों का जीवनस्तर निम्न होने के नाते इनको अविकसित मुल्क कहा गया. उस समय उनकी बराबरी सीधे पश्चिमी यूरोप तथा अमेरिका से था.
1950 से लेकर 1960 के इस एक दशक में अफ्रीकी व एशियाई देशों ने गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी, निरक्षरता और बुनियादी जरुरतों (रोटी , कपड़ा , मकान , स्वास्थ्य और शिक्षा को झेला.
बहुसंख्यक आबादी की वजह से आज तक विकास का फुहार भी इनको प्राप्त न हुआ, लेकिन यहां के भ्रष्ट और जनगद्दार नेताओं ने पूरी बर्षात रुपी लोकलुभावन वादों का खाका सुना दिया. उनकी माने तो बस गरीबी खत्म.
आजादी के बाद अगर देश में निहित पर्याप्त संसाधनों का उपयोग देश की हालात सुधारने में किया गया होता तो आज इस देश की स्थिति कुछ और ही होती. लेकिन देश के राजनेताओं ने आर्थिक गड़बड़ी बेतहाशा जारी रखा. घोटालों और योजनाओं में ऐसे-ऐसे घपले किए गए जिससे विकास को छोड़िए इसके लिए सहीं रास्ता भी नहीं बन सका. स्विस बैंक में काले धन की होड़ लग गई. जो आज एक बड़ा संकट बना हुआ है.
भारतीय नेताओं की माने तो शिक्षा का आधुनिकीकरण गांवों -गांवों तक प्रसारित किया जा चुका है. ऐसा कहते हुए शायद उनकी जीभ ना कांपती होगी लेकिन आज भी ग्रामीण विद्यालयों में ठंड के मौसम में जमीन पर बैठने वाले बच्चों का शरीर ठंड से जरुर कांप जाता है.
क्या औद्योगीकरण ने विकासशील देशों में उन्नति का लक्ष्य निर्धारित किया? हां अब ये नहीं कहा जा सकता है कि भारत एक विकासशील देश है लेकिन जमीनी हकीकत को देखने से यही लगता है कि सारी बाते फर्जी और सिर्फ कागजी है. भारत के लिए ये विकास का पहला रोड़ा है.
भारत में विकास को लेकर पंचवर्षीय योजनाओं की एक सीढ़ी बनाई गई, जो आसमान की उंचाईयों में नहीं, बल्कि किसी गड्ढे में लटका दी गई. विकास यदि असमानता रुपी गड्ढे को पाट नही सकता और गरीबों के उत्थान में सहायक नहीं बन सकता, तो ऐसा विकास किस काम का. भारत के लिए विकास का पथ सही तरीके से ना तय कर पाने का यह दूसरा रोड़ा.
वास्तव में विकास लाने के लिए औद्योगीकरण ने पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया. सुनामी का कहर दक्षिणी एशिया से लेकर दक्षिण पूर्वी एशिया को चुकाना पड़ा. इसका सबसे बड़ा कारण समुद्र तट पर उपस्थित वृक्षों का कटना ही था. पर्यावरणीस समस्या विकास का तीसरा रोड़ा है.
वायुमंडल में ग्रीनहाऊस गैसों के कारण भूमण्डल का ताप दिन-ब-दिन बढ़ रहा हैं जिसकी वजह से आर्कटिक और अंटार्कटिक ध्रुवों पर बर्फ पिघल रही हैं विशेषज्ञों का कहना है कि यह बांग्लादेश और मालदीव जैसे राष्ट्र को डुबों देने में सक्षम हैं. जलवायु परिवर्तन विकास का चौथा रोड़ा है.
पारिस्थितिकी संकट से ऊबर पाना बस में नहीं हैं. समुद्र का जलीय स्तर दिन-ब-दिन बढ़ रहा हैं. प्राकृतिक आपदा गरीब-अमीर में फर्क नहीं रखता यह सबके लिए घातक हैं. सबसे जरूरी हैं प्राकृतिक संसाधन रुपी अमूल्य संपदा का संरक्षण. इसकी हिफाज़त न करना शायद विकास का पांचवां रोड़ा साबित हो सकता हैं.