कुछ हो नहीं रहा हैं, बस बदलाव की उम्मीद कैसे कर लूं.

पता नहीं क्यों आज  सुबह से मै बहुत परेशान हूं, कोई बात भी नहीं है . मुझे मेरे आसपास की चीज़े जिसे परिवेश भी कहा जा सकता हैं मन में इस हद तक घर कर जाती है कि उसके बाद मै उनसे बाहर नहीं निकल पाता.

मै अक्सर चाय की दुकानों पर जब छोटे बच्चों को काम करते हुए देखता तो अच्छा नहीं लगता था लेकिन धीरे-धीरे आदत पड़ गई. कभी-कभी तो आवेश में आकर मै पूछ भी देता था कि आप को क्या हक है इस बच्चे के भविष्य के साथ खेलनें का. इस नाते तो नहीं कि आप इसके पिता हैं. आप इसके भविष्य के साथ ही साथ भारत के स्वर्णिम भविष्य को दांव पर लगा रहे हैं. ह्यूमन इन्टरेस्ट की दो चार खबरों का कोई मतलब नहीं बनता जब लाखों करोड़ों का आने वाला कल हासिये पर चल गया हो. बाल श्रम अपराध है, ये बात सबको पता हैं ज्यादातर पत्रकार इस पर स्टोरी भी कर चुके हैं लेकिन यही लोग अपने दफ्तरों से बाहर निकलकर कहते है रामू बेटा चाय पिलाना. क्या एक बाल मजदूर को रामू के साथ बेटा लगाकर पुकार देने से एक जघन्य अपराध को करना नैतिक है.
संवैधानिक अपराध है ये.

सच बताऊं मुझे ऐसा क्यों लगता था. क्योंकि मैने अपनी आंखों के सामने अपने ही कुछ मित्रों के सपने को चकनाचूर होते देख चुका था. वजह यह नहीं थी उनको भी इन मासूमों की तरह अपना सुनहरा भविष्य दांव पर लगाकर दुकान नहीं चलाना पड़ा था बल्कि उनके परिवार वालों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी.

मै स्पष्ट अक्षरों में इतना कहना वाजिब समझता हूं कि कैसा भी मुल्क क्यों ना हों, उसकी आजादी का कोई मतलब नहीं है जब वहां के सभी युवाओं जोकि प्रतिभावान है ये मौक़ा तक नहीं  मिल पा रहा हों जिससे वो अपनी प्रतिभा को सबके सामने रख सके.

दूसरी तरफ अगर आप चमचागिरी करके, दलाली करके और केवल आर्थिक रुप से समृद्ध होने के नाते अगर अपनी दक्षता को दिखा पा रहे हैं तो आप ऐसा कभी नहीं कह सकते कि आपने अपना मुकाम अपनी दम पर हासिल किया हैं. ऐसा भी तो हो सकता कि अभावों और दुश्वारियों के चलते आप से बेहतर कुशलता रखने वाले व्यक्ति की जगह ले रहें हो आप.

समस्या इस बात की नहीं है कि कौन कितना तेज है और अगला कितना मंदबुद्धि. सवाल इस बात का है कि जैसे आजकल गीता, कुरान की बातों को ताक पर रखकर कुछ चंद लोगों ने धर्म को अपना हिसाब किताब देना शुरू कर दिया हैं. ठीक इसी प्रकार संविधान में समान हक की बात केवल हैं. वो कभी भी पूरे भारत लागू नहीं की जा सकती.

जिस दिन समानता इस कदर हो जायेगी  कि गरीब बिना हिचके एक अमीर से अपने हक की बात कर सकेगा. एक सबसे निचले तबके का प्रतिभावान छात्र बिना किसी अभाव के शिक्षा के हक और अपने उज्जवल भविष्य के लिए उस अमीर छात्र के साथ प्रतियोगी बन पायेगा जो समानता, कौशल और शिक्षा में कई गुना बेहतर है उस दिन मै मान लूंगा कि संविधान और आजादी का मतलब भी बनता है इस देश में.

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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