तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज बनाये जाने की पूरी कहानी
महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय मुस्लिम, ईसाई, ज्यूज, पारसी और अन्य सभी जिनके लिए भारत घर है, एक ही ध्वज को मान्यता दें और इसके लिए मर मिटें’.
जिस ध्वज को देखकर भारत के सूरमा जोश से लबालब हो जाते है. जिस ध्वज के नीचे खड़े होकर राष्ट्रीय पर्वो पर हम राष्ट्रभक्ति और देशप्रेम से सराबोर हो जाते है. जिस ध्वज को देखने के बाद हमारे भीतर वतन के लिए मर-मिटने का जज्बा पैदा होता है. उसे भारतीय गणराज्य द्वारा अपनायें जाने के पीछे एक लम्बी कहानी है.
ये भी पढ़े: First class indian , Third class politician
फिलहाल मौजूदा तिरंगा पिंगली वैंकेयानंद के अभिकल्पना द्वारा संवारा गया है.
22 जुलाई 1947, को संविधान सभा की बैठक में इसबात का निर्णय लिया गया कि आयताकार ध्वज जिसमें सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरे रंग की पट्टी होती है. सफेद पट्टी के बीचों-बीच एक गहरे नीले रंग का चक्र होता है जो अशोक चक्र है.
लेकिन इन सबके बाबत भारत का राष्ट्रीय ध्वज किन-किन रूपों में सामने आया इसके पीछे की कहानी जानना बड़ा ही रोचक है.
राष्ट्रीय ध्वज के विकास में कुछ राजनैतिक पड़ाव हैं.
प्रथम राष्ट्रीय ध्वज
द्वितीय राष्ट्रीय ध्वज
तृतीय राष्ट्रीय ध्वज
इसके बाद तिरंगे को जो स्वरूप दिया गया वो तिरंगे से हू-ब-हू मिलता है, अंतर केवल इस बात की थी कि उसमें अशोक चक्र के स्थान पर चरखा था.
तिरंगा इस बात का प्रतीक है कि भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है और यहां के सभी निवासी चाहे हिन्दू हो, मुसलमान हो, सिख या फिर ईसाई हो इसके नीचे खड़े होकर भारत की रक्षा करने का शपथ लेते है.