मै उत्तर प्रदेश आज अपने वर्तमान की हालात बताने जा रहा हूं. थोड़ा संभल कर सुनियेगा मेरा दर्द.
मै हमेशा यही सोचता रहा कि बदलाव होने ही वाला है. लेकिन मेरे जनप्रतिनिधियों ने मेरे उम्मीद पर पानी फेरने का काम दम लगाकर किया.
मैने जिन लोगों पर विश्वास कर, लोगों को जागरुक करने और समाज की भलाई का जिम्मा सौंपा, वे आज केवल और केवल कमाई करने पर ध्यान देने लगे हैं.
मैने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा ये हालात यहीं के रहने वाले कर देंगे.
मेरे कुछ हिस्से तो लगभग लगभग सारी सुविधाओं से लैश हो चुके हैं. लेकिन उन बस्तियों का क्या जहां उद्यम की कोई कमी नहीं हैं. कमी सिर्फ़ इस बात की है कि वहां कोई औद्योगिक केन्द्र नहीं हैं.
मेरी दशा ऐसी बना दी गई है कि यहां के लोग अपना घर-बार छोड़ने को मजबूर हो गये हैं. गरीबी और अमीरी के पर्वत और खाई के बीच समाज ऐसा बंट गया हैं कि आज इसको पाट सकना किसी के बस की बात नहीं लगती.
हां मेरे कुछ पुराने विचारकों ने समाजवाद पर ज़मीनी काम किया लेकिन उनके प्रयासों को आगे बढ़ाने वाला कोई आया नहीं.
कुछेक आये लेकिन उन्होनें श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मधु निलये, कर्पूरी ठाकुर और राममनोहर लोहिया का गुणगान करके अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने में वक्त जाया कर दिया.
लोकतंत्र में जब कुव्यवस्था फैलती है, भ्रष्टाचार चरम पर होता हैं. जनता के हक का पैसा जब उसे नहीं मिलता. जनसामान्य को प्राथमिक सुविधायें नहीं मुहैया कराई जाती है. तो क्रांति और जनांदोलन से ऐसे लोकतंत्र का विरोध करने के लिए मैने माध्यम पर बहुत भरोसा कर किया था. लेकिन असलियत यहीं है कि मेरी उम्मीदों पर वो भी खरा नहीं उतर पा रहा है.
व्यवस्था की लापरवाहियों का मार मेरे अपने लोग कैसे सहते है ये मुझसे बेहतर कोई और नहीं जानता हैं.
जिस प्रदेश का रंग रुप उसके अलग तरह के लोगों, विचारों और धर्मो से सजता था. उसे राजनेताओं ने वोटबैंकिंग के लिए कैसे इस्तेमाल किया ये मुजफ्फरनगर, मथुरा और कैराना ने मुझे बता दिया हैं.
उनकी बातों को सुनने के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे वे इनके पीछे के कारणों से नफरत करने लगे हो.
मेरे मन की बातें और भी हैं लेकिन इस चुनाव और आजादी के 70 साल पूरे होने के बीच मै सारी दास्तां सुनाऊंगा. मेरे बातों को अमन करना या ना करना मै उत्तर प्रदेश वासियों के हाथ में छोड़ता हूं.