हम उस भारत में जी रहे हैं, जहां गाँधी और मण्डेला के सिद्धांतों पर बातें होती है लेकिन उन्हें कभी अपनाया नहीं जाता है. गांधीवाद पर अक्सर वही लोग ज्ञान देने का काम करते है जो पंचशील और अमन के विरोध में एक संगठन के इशारों पर अपने कट्टरवादी सोच को लागू करवातें है और सत्ता के शिखर से उसे मनवाते है.
सवाल ये है कि आखिर कहाँ गया बापू के सपनों का भारत, कहाँ खो गया अमन को पूरी शिद्दत से अपनाने और मानने वाला भारत!
यहां अब अहिंसा की शुरूआत तब होती है जब कोई कट्टरवादी और जनसंख्या बहुल तबका गुलबर्ग सोसाइटी को घेर कत्लेआम करवा देता है और उसके बाद अपने आपको गांधी के सिद्धांत को मानने वाला बताता है.
आज आरक्षणवाद की पैरोकारी वे करते हैं, जिन्हें आरक्षण के मायने फायदे और नुकसान तक सीमित नज़र आते है.
मजहबी दंगे करवाने वाले और इसका ठेका लेने वाले जनगद्दार आज के दिन बापू को श्रद्धांजलि देने राजघाट जाकर खुद को अहिंसक साबित कर देते है.
जो NDA वोटबैंकिंग के लिए उन लोगो को अपने पार्टी में शामिल कर लेती है जिनका पिछला रिकार्ड थाने में लदा पड़ा है. उसके पीछे आप ऐसे भागते है जैसे फिर से सुभाष जैसा भरोसेमंद नेता आ गया हो इस धरती पर.