ये एक बहुत बड़ा और लंबे चर्चा का बिषय है. लेकिन इनके दोनों पहलुओं को समझना और बड़े मतभेद को समाप्त करने के लिए एक अच्छे विश्लेषण की आवश्यकता है. क्योंकि जो कुछ हमें सही लगता है, जरूरी नहीं वो गलत हो; और इसी प्रकार जो हमें गलत और अनैतिक लगता हो, ऐसा भी नहीं है कि वो वाकई में सही ही हो.
मान लीजिए अगर आप एक शाश्वत हिंदू परिवार में पैदा हुए हो. जहाँ पर मांसाहार खाने की बात तो दूर, बोलना भी गलत हो, पाप हो. तो फिर आप उसका पक्ष कैसे ले सकते है!
आपको हमेशा से बताया और समझाया गया हो कि जो लोग किसी को मारकर खा सकते है; वो कितने निर्मम होते होंगे.
ठीक इसी प्रकार अगर आप ऐसे घर में पैदा हुए हो जहाँ पर मांसाहार खाने का चलन हो; और आपके परिजन इसे बड़े शौक के साथ खाते हो. बचपन से ही आपको ये समझाया गया हो कि मांसाहार शरीर बनाने में मदद करता है, और ताकत देता है. तो ऐसा होना लाजमी है, कि आप अपने पक्ष पर डटे रहेंगे. चाहे दुनिया कितना भी तथ्य, आंकड़े और बड़े-बड़े विचारको की बातें आपके सामने क्यों ना रख दे.
दरअसल शाकाहारियों को पता होता हैं कि जीवन केवल पशुओं में ही नहीं, शाक-सब्ज़ी से लेकर हरेक पादप में होता ही है. इसीलिए इसे सजीव भी कहा जाता है. ये बातें सबने क्लास चौथी और पांचवी में ही जान लिया था. और इसका प्रयोग आओं करके देखें में किया भी था. लेकिन इन सबके बाबत शाकाहारी अपना पक्ष लेना तो छोडे़ंगे नहीं; उनको पता होता हैं कि दूध में पायस नामक जीवाणु पाया जाता है और इसके बाद भी उनका कहना हैं कि वे किसी की निर्मम हत्या नहीं करते है.
इन बातों के इतर ज्यादातर लोगो का मानना हैं कि शाकाहारी सही हैं और वे अकड़ के साथ अपनी बातें रखते हैं; इनमें मुख्य रूप से जैन धर्म के महावीर स्वामी, आधुनिक भारत के जनक बापू, सदीं के महानायक कहें जाने वाले अमिताभ बच्चन शाकाहार को अपनी ऊर्जा और कामयाबी से जोड़कर इसका पक्ष रखते हैं.
बापू हमेशा शाकाहार भोजन का ही पक्ष लेते थे. उनका मानना था कि मांसाहार का सेवन करने वाले लोग एक निर्मम हत्या से गुजरते है.
जीवों पर दया करना और इसके लिए प्रयास करते रहना गाँधीजी का एक मिशन था. इसीलिए शाकाहारी और मांसाहारी की बात पर बापू ने नेटाल मरकरी के संपादक को लिखा था, जोकि कुछ इस प्रकार था;
“दुनिया के लगभग सारे किसान शाकाहारी होते हैं, और यह की सबसे शक्तिशाली और सबसे उपयोगी पशु अर्थात घोड़ा शाकाहारी होता है जबकि सबसे भयानक और लगभग पूरी तरह बेकार पशु अर्थात शेर मांसाहारी होता है.”
इस बिषय को अगर थोड़ा और खींचा ताना जाये तो सामने ये निकलकर आता हैं कि मांसाहारी और शाकाहारी दोनों अपनी-अपनी जगह गलत नहीं है. लेकिन कुछेक जो एक साथ दोनों धर्म निभाने की कोशिश करते है. उनका मालिक तो भगवान भी नहीं बन सकता. उनका अंदाज किसी को भी ये सोचने पर मजबूर कर देगा कि भाइ साहेब कितना सात्विक मांसाहारी है, जैसे- आपने अक्सर सुना ही होगा कि ‘ अरे आज मंगलवार है ना, तो आज नहीं खाते हैं किसी और दिन. आजकल कुछ लोग इस जुमले का इस्तेमाल करते हैं कि नवरात्रि भर तो इन सारी चीजों को भूल ही जाओ. क्या ऐसा करने से सात्विकता बनी रह जाती है.
स्पष्टीकरण ये कि मांसाहारी होना ठीक है, शाकाहारी होना भी; लेकिन ये बीच वाले पता नहीं क्या जताना, बताना और जाहिर करना चाहते हैं; ये तो समझ से परे ही है. सात्विक मांसाहारी एक बड़ा मुद्दा है, मांसाहार बनाम शाकाहार लोगो में झगड़े करवाये या ना करवाये, लेकिन सात्विक मांसाहार कुछ समय बाद ये सवाल जरुर बनेगा कि या तो मांसाहारी ही रहिए या फिर धार्मिक सात्विकता ही निभा लीजिए.