वर्तमान आदर्शवाद धर्मग्रन्थों के इतर होना चाहिए

कोई भी विचार बदलते समय में खुद को उस परिवेश में नहीं ढाल सकता, जिसमे वो सैकड़ों साल पहले अपनाया जाता रहा है.
आदर्शवाद का मतलब वर्तमान में वह सिद्धांत, विचार या दर्शन जिसके अनुरूप चलने पर समाज, नगर और मुल्क खुद को पाबंद ना पाये.

प्लूटो, अरस्तू और सुकरात से लेकर दुनिया के सैकड़ों महानतम दार्शनिकों के विचार आज के समय में पूर्णतया लागू नहीं किए जा सकते हैं.

कुछेक कवियों की कल्पनाए भी आदर्शवाद की स्थिति पैदा करती है. लेकिन संभवतया वे अपने-अपने युग की तस्वीरे ही होती है; इस नाते आज अतीत की अच्छी खासी आदर्श सिद्धांत आज के समय में हूबहू उसी तरह लागू नहीं किए जा सकते ; क्योंकि इसकी वजह से अनेक प्रकार की कुव्यवस्था फैलने के तमाम आसार बन सकते है.

इसी प्रकार धर्मग्रंथ भी अपने-अपने समय के आदर्शवाद हो सकते है; लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि जैसा था, ठीक वैसा ही हम वर्तमान स्थिति में लागू कर पाये. जैसे आपने देखा होगा कि कृष्ण अपने युग के आदर्श पुरुष थे. उनके कर्म आदर्शवाद बताये जाते है. निसंदेह ऐसा रहा होगा. लेकिन क्या आज कृष्ण की तरह कोई किसी दुष्ट व्यक्ति का वध कर सकता है.

रामलीला के दौरान लाखों की तादाद में लोग रावण जोकि समाज के आदर्शवाद को नहीं मानता था; उसे जला देते है.
लेकिन क्या हम आज उन करोड़ो रावण का वध कर सकते है जो महिलाओं का अपमान कर सामाजिक आदर्शवाद को नुकसान पहुँचा रहे है.
ऐसा नहीं किया जा सकता. क्योंकि ऐसा करने के बाद आप अपने को जेल में पायेंगे.

लेकिन अनेक विचारों में एक नयापन लाना, उस स्थिति को नये नजरिए से देख पाना निःसंकोच आज का आदर्शवाद होगा;
तुलसीदास की दो लाइने बहुत कुछ कह जाती है कि;
“जिमि पाखंडबाद ते,
लुप्त होहि सदग्रन्थ.”

मायने ये हैं कि;
पाखंड करने वाले अच्छे खासे धर्मग्रथों को समाप्त कर अपनी नीतियां चलाने लगते हैं.

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: