आजमगढ़ विकास कार्यक्रम में डी ग्रेड पाता है तो चुनावी माहौल बिना सोचे एक सवाल कर ही देता है कि विकास कार्यक्रम में इतनी लापरवाही क्यों हो रही है?
लेकिन अधिकारियों को फटकार लगाने वाले ये क्यों नहीं सोचते कि आजमगढ़ और विकास का संबंध केवल चार दिन की चांदनी की तरह ही है.
अगर बात की जाये मौजूदा हालात की तो कहीं-कहीं आधे रास्ते पर कचड़े अपनी मौजूदगी से बदबू और नगरपालिका के ऊपर धब्बा लगाते नजर आ ही जाते है.
शहर की नालियों को ढकने का कार्यक्रम विकास का नहीं मूलभूत और बहुत ही बुनियादी काम है, लेकिन करोड़ो पैसा लेकर ये कार्यक्रम संपादित नहीं किये जा रहे है. नालियों का टूटना छोड़िए कहीं-कहीं तो इनमें जो कचडे़ है वे नदियों की तरह अपना रास्ता खुद बनाते नजर आ सकते है.
अब बताइए विकास कार्यक्रम पर तंज कसने से पहले आजमगढ़ अपने आगंतुकों के लिए शौच करवाने के लिए भी तैयार नहीं हो पाया है. पूरे शहर में दर्जनों जगह कचडे़ पड़े है अगर वहाँ डस्टबिन होते तो असुविधाजनक जैसा आसार कम से कम बनता और कई बार तो सड़क जाम भी इसकी वजह से ही होता है.
नरौली पुल के इस पार से उस पार पहुंचने के बीच आप दुर्गंधों का ऐसा जायका लेंगे की आपके स्मृतियों को ये अनुभव पूरे जीवन नहीं भूलेगा.
व्यवस्था की लापरवाहियों का हिसाब लेने वाले केवल यहीं पूछते हैं कि काम क्यों नहीं हुआ और इसके बाद उनकी सारी जवाबदेही समाप्त सी हो जाती है.
ये भूलभुलैया पहली बार की बात नहीं है. ऐसा होता रहता है.
आजमगढ़ अपनी बादशाहत में चार चांद लगाता तब नजर आता है जब कुछ इस तरह की गतिविधियां सामने आती हैं और एक खुला प्रश्नचिह्न छोड़ ऐसे रवैये को दिखाती है जो किसी बाहुबली समाज से मिलती जुलती है. जो एक-एक करके इस प्रकार है;
अभी हाल ही में आजमगढ़ विकास प्राधिकरण ने बवाली मोड़ पर स्थित कुछ ग्रीनलैंड जोन में बने मकान को ध्वस्त कर दिया. ये वारदात अपने आप में हास्यास्पद किस्म का है. लेकिन कुछ अपनी आजादी ऐसे ही सिद्ध करने के महारथी है.
आजमगढ़ की स्थिति ऐसी है कि अगर बिजली का ट्रांसफार्मर किसी वजह से बिगड़ जाये तो उसे बनने में 72 घंटे नहीं; महिनों लग जाते है. मंडलायुक्त नीलम अहलावत ने अपने कार्यालय में सड़क निर्माण के कामों में देरी होने से अधिकारियों को चेतावनी तो दे दिया लेकिन आजमगढ़ मुख्य शहर की 100 मीटर की परिधि में भी लोग टूटी सड़कों पर चलने के लिए मजबूर हो रहे हैं.
मंडलायुक्त को शायद ये नहीं पता है कि आजमगढ़ का विकास कार्यक्रम हवाहवाई ही होता है.
आजमगढ़, बलिया और मऊ जिला मुख्यालय को फोर लेन से जोड़ने के लिए पीडब्ल्यूडी की सुस्ती मुख्य अभियंता के काम करने में अनहद देरी पर सवाल छोड़ जाती है.
अभी हाल में ही पारिवारिक विवादों के मकड़जाल में उलझे मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि रथ भी चलेगा, साइकिल भी दौड़ेगी और मै हेलिकॉप्टर से प्रचार में पहुंचूंगा. सांसदजी शहर में रहने वाले आजमगढ़ के कुछेक ऐसे अल्पसंख्यक परिवारों और कहने के लिए शहरी इलाको का खेमा पानी के जमाव से त्रस्त है, उनके लिए रास्ते नहीं है और आपकी दोयम दर्जे की राजनीति हेलिकॉप्टर की बात करती है.
मुख्यमंत्री तो युवा थे लोगों को उम्मीदें थी उनसे. लेकिन ये भी शायद आधुनिक नेता बन ही गये हैं इनका कहना है कि हाॅस्टल में रहा हूं, अकेले रहना जानता हूं. अब तक देश के प्रधानमंत्री ने ही चाय बेचते-बेचते राजनीति सीखा था; जिसकी दुहाई वे हमेशा देते रहते हैं. अब आप भी उसी कतार में नजर आने लगे है. आप लखनऊ में विकास कार्य कर आजमगढ़ में वोट लेने की कल्पना कर रहे है. गलत बात!
अकेलापन अगर आपको आत्मनिर्भर बनाता है तो आजमगढ़ विकास के अकेलेपन को किस तरह मात देगा. क्योंकि जब आपको हाॅस्टल छोड़ दिया गया तो आपने सीखा. लेकिन आजमगढ़ को अकेला छोड़ आप यूपी में अकेले पड़ जायेंगे.