1947 में आजाद भारत की पैदायशी पर बहुत बड़ा जश्न मनाया गया था. आज वो सात दशक का होने जा रहा है. जिनके हाथ में इसकी परवरिश सौंपी गई, वे अपने काम में ही लगे रहते है. राष्ट्रवादी लोग मेरे विरोध में ना खड़े हो तो एक सच्चाई ये भी थी कि आजाद भारत अपने बचपन के दिनों में कुपोषण का भी शिकार रहा था. बचपन में इसका पालन-पोषण सही तरीके से ना हो पाने के कारण उसका खामियाजा उसे आज भी भोगना पड़ रहा है.
जब ये तकरीबन एक दशक का था; तो इसने नेहरू के वैज्ञानिक सोच की वजह से आईआईटी और आईआईएम का टीका लगवाकर तकनीकी और मैनेजमेंट के कामों के लिए युवाओं को आत्मनिर्भर बनाया था. समय बीतता गया और इसे काफी दिक़्क़तों का सामना भी करना पड़ा.
समय-समय पर इसके ऊपर स्वास्थ्य संबंधी प्रश्नचिह्न कई रूपों में सामने आता रहा, जैसे इसने सूखा, भूखमरी और अकाल झेला, पेट्रोलियम का दाम इतना बढ़ गया कि रूपये का अवमूल्यन होता रहा. कुछ चेकअप भी करवाये गए थे जैसे हरित क्रांति, पीत क्रांति और नील क्रांति. हरापन में रहना इसे बहुत पसंद था, लेकिन आगे बढ़ने की चक्कर में इसके संरक्षकों और पास-पड़ोस वालो ने इसकी धमनियों को काटकर फेंक दिया. ये और कमजोर होता गया.
एक बार तो हद ही कर दी गई थी, आपातकाल ने भारत को एकबारगी में अंग्रेजियत की याद दिला दी. इसने मंडल-कमंडल का बुखार भी सहा. लगातार ये अनेक प्रकार के रोगों की चपेट में आता रहा. संचार क्रांति आई लेकिन इसकी सुस्ती इसलिए भी तेजी में तब्दील नहीं हो पाई क्योंकि संचार क्रांति से केवल इसका ह्रदय ही विदारक स्थिति को लांघ पाया था.
घोटालों की वजह से राजनीतिक भ्रष्टाचार का बोलबाला जब ये साबित करने लगा कि इसका शरीर तपन से जल रहा है तो इसके बाद इसका ब्लड टेस्ट करवाया गया. रिपोर्ट में जो आया वो सभी जानते है.
इसकी इसकी कमजोरियों और सुस्तियों की वजह से कोई रिश्ता भी नहीं लेकर आता. पूरी दुनिया इसे दुल्हे के रुप में सजता देखने के लिए बेताब है, मगर ये तभी संभव हो पायेगा जब इसके हर अंग यानी क्षेत्र को संजाया जायेगा. भारत रूपी दूल्हे को हल्दी केवल पांच जगह लगाने से काम नहीं चलने वाला, हल्दी की जरुरत हर राज्य को है.
इसकी शादी जब तक प्राथमिक सुविधाओं से करा नहीं दी जाती इसको अकेलापन सहना ही पड़ेगा. जिससे निखरने के बाद वो विकास रूपी बच्चे को जन्म दे पायेगा.