कोई किसी को समझने की कोशिश करना नहीं चाहता है, बल्कि इसलिए पढ़ता है कि प्रतिक्रिया कर सके और ये दौर प्रतियोगिता का ही तो है. सभी अपनी बात सबसे ऊपर रखना चाहते है. विश्लेषण को कोई तवज्जो नहीं दिया जाता है. संभववाद की संभावना नहीं बन पाती. अनर्गल बोलने वाले नेता और वक्ता बन जाते है. मानव व्यवहार तभी शिरकत करता है जब उसे फायदे की गुंजाइश का अंदाजा लगने लगे. मगर इतिहास का शुकराना जिसने फायदे के फेहरिस्त को धोबी पछाड़ कर एक मिसाल कायम किया है.
जब तक बुनियाद हवा में बनाए जायेंगे, बदलाव अपनी लाचारी को पनाह देता मिलेगा.