मै देश की राजधानी दिल्ली हूं. मै पिछले 17 साल से चल रहे स्माॅग के सबसे बुरे दौर से बुरी तरह घुट रही हूं. दिवाली के बाद तो मेरे चहुँओर एक भयानक और प्रदूषित धुंध छाई हुई है.
दिल्ली की पत्रकार कह रहे हैं कि मेरी हवा खराब हो रही है, मगर अब उन्हें कैसे बताऊं कि हवा मेरी खराब नहीं हो रही, बल्कि मै यहां के उद्योगपतियों और औद्योगीकरण की मार झेल रही हूं. कार्बनयुग का खतरा गरीब-अमीर नहीं देखेंगी. ये सबके लिए घातक है. जिस दिल्ली से कभी लोग दिल्लगी कर बैठते थे; वो आज लोगो को सांस लेने में दिक्कतें पैदा कर रही है. मै ये आरोप किस तरह बर्दाश्त कर रही हूं, ये मुझसे बेहतर भला कौन जान सकता है. प्रदूषित हवा की जकड़न में फंसने के बाद भी मेरे साख पर और मेरी आबोहवा पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने वाला मनुष्य शायद नहीं जानता है कि इससे उसका कितना बड़ा नुकसान हो सकता है.
इस स्माॅग की वजह से ही निगम स्कूलों में छुट्टी का ऐलान कर दिया गया है.
मौसम विभाग का कहना है कि स्थिर हवा और धुंध की वजह से मेरे भीतर फैल चुका खतरनाक हवा छंट नहीं पा रहे है. मेरी इस स्थिति का जिम्मेदार मनुष्य ही है, जिसे अब जाकर एहसास हुआ है जब ऐसी स्थिति चार-पांच दिन रहने का अंदेशा लगाया जा रहा है.
इस घोर संकट से उबरने या निजात पाने का केवल एक ही तरीका है और वो स्वयं प्राकृतिक संभावना के बूते पर ही आधारित है.
इसके लिए पूर्वोत्तर हवा को तीन किलोमीटर प्रति घंटे से भी तेज चलने पर ही बात बन पायेगी.