अमौद्रीकरण यानी 14.95 लाख करोड़ रुपये मूल्य की मुद्रा को अमान्य किया गया, जो नोटबंदी के रुप में मीडिया के सुर्खियों को संचारित कर रहा है. ज्यादातर लोग अचानक लिए गए इस फैसले के खिलाफ है. पूरे दिन बैंकों के बाहर जनता अपना काम काज छोड़ लाइनों में लगने के लिए मजबूर हो रही है. बैंक के बंद होने तक ये लाइने उसी रुप में बनी रहती है. जिनके घरों में कोई फंक्शन पहले से तय हो चुके है, उनके लिए बड़ी समस्या है. केवल पैसे निकाल लेने भर से उनका काम संपादित नहीं हो सकता.
एटीएम की हालात भी खस्ता हो चली है. समस्या इस बात की है कि लोग कालेधन की आशा में ये सब बर्दाश्त कर रहे है. कालेधन का रास्ता साफ नहीं होने वाला. इस बात की भनक जिस वक़्त जनता को लगेगी उस वक्त उसके आक्रोश से बचना असंभव सा हो जायेगा.
तमाम अर्थशास्त्री इसे अपरिपक्व और दूरदर्शिता से कोसों दूर रहने वाला फैसला बता चुके है.