भारत के जिन युवाओं ने खीचीं लकीर पर चलना पसंद नहीं किया, उनमें सादगी थी, संजीदगी थी, सूझ थी, लोगो को पास-पास लाने का तरीका पता था, सुंदरता थी, लगन था, साहस थी, स्वास्थ्य था, चरित्र था, विद्या थी, बुद्धि थी और इनके अलावा एक चीज और थी, जो युवाओं में बेहद जरूरी मानी जाती है, विवेक.
रामप्रसाद बिस्मिल उनमें से एक थे. उनका जीवन एक आदर्श नौजवान का जीवन था. उनकी देशभक्ति आज के मिया मिट्ठुओं के लिए अनुकरणीय है. आज जो लोग देशभक्त बनने के लिए तमाम प्रकार के दिखावे कर रहे है. उन लोगो को बिस्मिल से सबक लेनी चाहिए कि देश के लिए, इस जमीं के लिए, अपनों के लिए और समाज के हित के लिए मर मिटने की निष्ठा रखने वाले कभी नाम के भूखे नहीं रहे, उनको चिंता थी तो केवल और केवल राष्ट्रप्रेम को बरपाने की.
विदेशी शासन के साथ उस समय भी अपने लोग थे, जो सिर्फ अपने हित के लिए, पैसों के लिए, पद के लिए, देश को दांवपर लगाने जैसा दुस्साहस करते थे. लेकिन समाज से, इस देश से और इस मिट्टी के खेतिहर पहरेदार इन व्यवधानों और आफतों में डिगते नहीं है बल्कि इनके खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व करते है.
बिस्मिल बौद्ध धर्म और आर्य समाज में श्रद्धा रखने वाले थे. जिसकी वजह से वे सामाजिक असमानता के विरोधी, शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले और इंसानियत के सच्चे पैरोकार थे. अंग्रेज़ी सरकार को समाप्त करने की प्रतिज्ञा उनके देशप्रेम के अथाह भावना का ही परिणाम था. जब वे क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गये तो शस्त्र संग्रह कर जल्द से जल्द मातृभूमि को मुक्त करने की जिजीविषा उनको अधीर करने लगी.
मैनपुरी षड्यंत्र का भारी खामियाजा बिस्मिल को भरना पड़ा. उनका विजन था अंग्रेजियत को सरहद पार करना.
आपको बता दे कि बिस्मिल अच्छे कलमकार भी थे. शायद लेखन का कार्य उनके मिशन को पूरा करने में ज्यादा समय लेता. इस नाते उन्होनें इसे घाटे का सौदा मानते हुए छोड़ दिया. इसके बाद रामप्रसाद बिस्मिल ने हिन्दुस्तान गणतांत्रिक संघ की स्थापना की. अच्छे उद्देश्य के लिए की गई छोटी अनैतिक गतिविधि गलत नहीं होती, ऐसा बिस्मिल का मानना था. इस बात को ध्यान में रखते हुए दल की आर्थिक कमियों को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने दल-बल के साथ डकैती करना शुरू कर दिया. काकोरी कांड में दल के सदस्यों के आपसी मतभेद की वजह से बिस्मिल पकड़े गए और फाँसी की सजा सुना दी गई. इनके साथ अशफाक उल्ला खाँ, रोशन सिंह और राजेन्द्र लाहिड़ी को भी फांसी की सजा सुनाई गई थी.
स्वदेश अखबार में बिस्मिल का लिखा छापा गया…,
19 तारीख सुबह 6:30 बजे फांसी का समय निश्चित हो चुका है. कोई चिंता नहीं, ईश्वर की कृपा से मै बार-बार जन्म लूंगा और मेरा उद्देश्य होगा कि संसार में पूर्ण स्वतंत्रता हो, …, कि प्रकृति की देन पर सबका एक सा अधिकार हो…., कि कोई किसी पर शासन ना करे. सभी जगह लोगो के अपने पंचायती राज स्थापित हो..,