धर्म के भीतर एक सूक्ष्म धर्म होता है, जिसे विज्ञान कहते हैं. धर्म अगर पहुंच है तो विज्ञान उद्देश्यपूर्ण पहुंच.
विज्ञान धर्मरुपी समाज में फैल चुकी कुरीतियों के लिए समाज सुधारक का काम करता हैं.
धर्म छोटे समूह में और घर में रहने को कहता है; वहीं विज्ञान समूची मानवजाति के साथ ही दुनिया के हरेक प्राणी के हित की बात करता है.
धर्म के मायने सिखलाते हैं कि वसुधैव कुटुम्बकम् यानी धरती एक परिवार के समान है. विज्ञान समझाता है कि बह्माण्ड एक दूसरे से संलग्न है. वहीं विज्ञान-धर्म कहता है कि मनुष्य अपने भीतर ही अलग-थलग रहता हैं उसे खुद से मुलाकात करने की जरुरत है.
विज्ञान-धर्म ना पूरी तरह से विज्ञान है और ना ही धर्म. असल में ये तो स्वतंत्र चिंतन को अपनाने और वैचारिक प्रयोग की प्रयोगशाला है जहाँ पर नश्वर और भौतिक के लिए एक नया परीक्षण कर बदलाव के लिए नये विचार पैदा किए जाते है.
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