इस गांव का भी सरोकार है प्रदेश से!
मै जिस गांव में पैदा हुआ, उसका नाम दुधनारा है. मेरा गांव मुख्य शहर के नजदीकी गांवों में है. महज 6 किमी. की दूरी पर स्थित है. उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक है. प्रदेशवासी 2 लाख 40 हजार वर्ग किमी में रहते है. इस क्षेत्रफल में कुल 21 करोड़ लोग रहते है. अब संशय इस बात का है कि इतने बड़े प्रदेश के इतने बड़े निर्णय के पहले मै एक छोटे से गांव जिसका क्षेत्रफल 2 वर्ग किमी भी नहीं होगा, उसकी बात क्यों कर रहा हूं. संशय सही है लेकिन मेरे गांव में जो लोग रहते है, उनका भी इस प्रदेश पर पूरा हक है. आजमगढ़ के इस छोटे से गांव दुधनारा जोकि शहर के पूर्व में स्थित है, में मुझे रहते हुए 22 साल होने जा रहे है, मगर मुझे अब तक कोई दहशत, आतंकवादी गतिविधि और ऐसे लोग नहीं दिखे. जैसाकि भाजपा के परिवर्तन रैली में प्रदेश अध्यक्ष जी ने कहां था. आतंक का केन्द्र तो बिलकुल भी नहीं.
मेरे गांव के दो किमी उत्तर से बहुत जल्द फैजाबाद रोड़ पर फोर लेन और दक्षिण से सिक्स लेन(बलिया और मऊ को जोड़ती हुई) बनने जा रही है. लेकिन इस गांव के खडंजें तक दुरूस्त नहीं है. मेरे पूरे गांव मे लोग गरीबी और बदहाली से त्रस्त है. बेरोजगारी की समस्या है. पेयजल की व्यवस्था समुचित नहीं है. लोग शिक्षा से पहले जीविका चलाने के लिए या तो महानगरों की तरफ प्रस्थान कर लेते है या फिर पढ़ाई छोड़ नौकरी करने की सोचने लगते है.
केन्द्र की योजनाओं में स्वच्छ भारत अभियान की मुखालफत जोरो पर है, लेकिन बामुश्किल एक दर्जन मध्यमवर्गीय परिवारों के पास ही शौचालय की व्यवस्था है, इसके निर्माण में ना केन्द्र सरकार का कोई हाथ है और ना ही राज्य सरकार का. जिन योजनाओं पर सरकार खर्च करने का हवाला देती है, उसपर कोई खास तादाद निर्भर नहीं है. प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पर व्यय का क्या फायदा जब वहां पर बच्चे हो ही न और अगर है तो पूरे विद्यार्थी संख्या के 10 फीसदी. मिड-डे-मिल का हवाला नाइंसाफ़ी ही है यहां के उन लोगो के लिए जो प्राइवेट संस्थानों पर हर साल 10 हजार से भी ज्यादा फीस दे रहे है. जो बच्चे शहर जाते है, उनका व्यय 50 हजार तक भी है. इनको निःशुल्क शिक्षा का क्या फायदा, इनको सरकारी योजनाओं से क्या मतलब?
अब बात स्वास्थ्य व्यवस्था की तो आशा, डाक्टर और समाजवादी स्वास्थ्य योजना की गाड़ी तो दिख जाती है, मगर चिकित्सालय पर कभी किसी बीमार को जाते मैने नहीं देखा, क्योंकि ये चिकित्सालय केवल कोटापूर्ति के लिए बना दिया गया है. गांव स्वावलंबी है, इसलिए अपने भरोसे अपने लिए प्राथमिक सुविधाओं की व्यवस्था किसी तरह कर लेता है.
उज्वला योजना के अंतर्गत गैस चूल्हे और सिलेंडर वितरित कर दिए गए है, मगर अति पिछड़ा वर्ग(मै इन्हें दलित नहीं कहूंगा, क्योंकि दलित का मतलब होता है, जिनका समाज से कोई सरोकार ना हो और ये गरीब और बदहाल लोग मेरे गांव के सदस्य है) आर्थिक तंगियों के कारण इसके उपयोग से महरूम है.
निषाद, हरिजन और पासवान के कच्चे घर पक्के करने में मायावती और आवास विकास परियोजना का हाथ है.
मेरे गांव के लोग बहुत ही सौहार्दपूर्ण तरीके से अपना जीवन यापन कर रहे है. लेकिन उनमें सरकारों की कोई भूमिका नहीं दिखती. मुलायम के जातीय वंशज इनके कार्यकाल में खुद को नेता समझ लेते है. जब कांग्रेस की प्रचार गाड़ियां आती है तो सवर्ण इसके लिए झंडा उठा लेता है. मायावती अगड़े पिछडे का जीवनस्तर सुधारने का हवाला देते हुए, उनको रिझा लेती है. इस गांव में कभी आप की टोपी दिखाई नहीं दी. भाजपा इस गांव के अच्छे दिन नहीं ले आ पाई.
प्राथमिक विद्यालय, जिसके संस्थापक मेरे दादाजी थे उनके उद्देश्यों को तिलांजलि देता नजर आ रहा है. ये विद्यालय इस नीयत से खोला गया था कि जब 40 साल पहले, उनके गांव की लड़किया पढाई के लिए शहर नहीं जाने दी जाती थी, उस समय शिक्षा की व्यवस्था गांव में होनी चाहिए. मेरे दादाजी कलकत्ता रहते थे. दादाजी के सोच को मै नमन करता हूं.
लोग खुद को बनाने के लिए शहर जाते है, गांव से निकलने के बाद, गांव की हालात भूल जाते है. चलिए फिलहाल ये सारी बातें इस परिप्रेक्ष्य में निरर्थक सी लगती है.
गांव में शिक्षित लोग है,लेकिन उन्हें कूपढ़ कहा जा सकता है. गांव के सुधार के लिए लोगो को एक साथ अपनी समस्याओं की शिकायत एडमिनिस्ट्रेशन से करना चाहिए इसके लिए सब एकमत नहीं होते.
कल के सपने की धुंध में मेरा गांव और मेरे लोग राजनीतिक पार्टियों के बयानबाजी में आस उपजा लेते है.
ये लोग भी भारत के लोग है, ये लोग उत्तरप्रदेश वासी है. आजमगढ़ की उपजाऊ भूमि में पैदा होने वाले लोग है, जहां सत्ता बनाई बिगाड़ी जाती है. साहित्यकार, पत्रकार, शिक्षाविद् और विद्वानों की तपस्थली है. इन्हें वंचित करना लोकतन्त्र की कलई खोल रहा है.
#Dudhnara #Azamgarh #ओजस #UP #UPElection