​अंधेर नगरी में लोकतन्त्र(5)

[राजनैतिक चंदें और भ्रष्टाचार]
बात राजनैतिक चंदो की, कहने के लिए उस सहयोग की जिससे राजनैतिक दल अपना वर्चस्व पाने के लिए एक महाप्रचार करते है और सत्ता हथियाने की कोशिश में लगातार लगे रहते है.
चुनाव आयोग को भी एक बाउंड्री लाइन में रख दिया जाता है. 

दरअसल, भ्रष्टाचार और कालाधन इसे खपाने के लिए मियादी और टिकाऊ जरिया है. 

अभी पिछले हफ्ते मैने देखा कि किसी राजनीतिक  दल के माननीय उम्मीदवार फैजाबाद रोड़ से आजमगढ़ शहर की तरफ जा रहे थे. उनके पीछे 10 गाड़िया थी. जिनमें बामुश्किल दो या एक लोग ही थे. कुछ में तो ड्राइवर को लेकर एक ही लोग थे. ये गाड़ियां राजनैतिक चंदे भी चला रहे थे. 

इस राजनीतिक जलवे को देखते ही मुझे 2014 के आमचुनाव की याद आ गई, जब निजी हेलिकॉप्टरों से देश की गरीबी और बदहाली भापी जा रही थी और बिना जनता तक पहुंचे 3D एनीमेशन के जरिए एक राजनीतिक दल की मजबूती के लिए पूरा जी जान लगाकर चंदों का पैसा खर्च किया जा रहा था.

ये महाप्रचार क्या बिना किसी कालेधन के संभव हो सकती थी. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी टीवी आॅन करते ही अच्छे दिन आने वाले है, दिखाता था. 

मोदी के जीत के पीछे माध्यम का पूरा हाथ था. इसे मानना पड़ेगा. कांग्रेस का दुष्प्रचार भी हुआ ये भी बिल्कुल घटना है.

जिस रकम से ये आसानी से प्रधानमंत्री बना दिए गए, क्या ये रकम अघोषित आय नहीं हो सकती है! क्या कालाधन इन चंदो में नहीं था. 20,000 तक के चंदों का हिसाब न देने की फेहरिस्त में भ्रष्टाचार का एक नया अध्याय बन जाता है और इंडिया टुडे हिन्दी मैगजीन के संपादक के शब्दों में मैले हाथों से सफाई सार्थक होता नजर आता है. 

भ्रष्टाचार, कालेधन और इन चंदों में ज्यादा अंतर नहीं है. इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी ने कोई सार्थक कदम उठाने का सोचा ही नहीं.

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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