आदरणीय रवीश कुमार,
वैसे तो मै आपका प्राइम टाइम जानबूझकर नहीं छोड़ता. हां किसी वजह से अगर छूट गया तो भी आप को ध्यान में रखे रहता हूं. दरअसल, आप जैसे दिग्गज से बात करते हुए मै खुद को थोड़ा अदना महसूस कर रहा हूं, मगर विश्वास मानिए बिल्कुल निर्भीक हूं.
आप इसलिए देश में चर्चित है कि आप किसी छोटे से मुद्दें को लेकर चलते है और उसे गहराईयों में ले जाकर अलोकतांत्रिक करार देते हुए बड़ा वाजिब और सधा हुआ प्रश्नचिह्न लगा कर सियासी अनैतिक चाल को धीमा और कभी-कभी तो स्थिर ही कर देते है.
फिलहाल, आज ये लिखित संवाद मै इसलिए कर रहा हूं कि मै आपके द्वारा प्रसारित किया जा रहा दुष्प्रचार पढ़ और सुन नहीं सकता. जिसमें आपने पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे युवाओं को थोड़ा ठहरने की बात कही है और उनके सलाहकार के रूप में आपने इतने पैसे बरबाद ना करने का सलाह भी दिया, ये चीजें बड़े ही जोर-शोर से यूट्युब पर देखी जा रही है और इसी के साथ ही आपके लिखे हुए लेख पर पढ़ी और शेयर की जा रही है.
दरअसल, आपकी इन बातों और दुष्प्रचार का कोई विरोध करना नहीं चाहता या फिर आप इतने वरिष्ठ है इस नाते ऐसे वैचारिक विष को सह लेता है. आपने कहा कि प्राइवेट मीडिया चैनल साॅरी सेंटर हम जैसे प्रेरको की वजह से इस लाइन में आते है तो ये आपकी गलतफहमी है. मैने भी अभी हाल में टीवी पत्रकारिता की पढ़ाई की, मगर मैने किसी प्रेरक की वजह या फिर आज तक के ब्रांड नेम को देखकर एडमिशन नहीं लिया. आपकी जानकारी के लिए और आपके कहे का विरोध करने के लिए मै अपने व्यक्तिगत जीवन की कुछ बातें साझा कर रहा हूं. जब मै 9th में था तो मेरे हिंदी के लेक्चरर ने मेरे निबंध को कुछ अलग देखकर कहा था कि अभिजीत तुम क्लास में भले ही इतने गुमशुम रहते हो मगर तुम्हारी शब्दावली मजबूत है अगर तुम डायरी लिखते रहो तो बहुत आगे जाओगे. उस समय के सपने को ना आपकी प्रेरकता मिली थी और ना ही किसी ब्रांडनेम की और ना ही किसी ब्रांड एंकर की. उसके बाद मैने हिन्दी सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता जोकि जिले की एक सामाजिक संस्था अस्तित्व ने करवाया था, उसमें प्रतिभागी बन मैने सिल्वर मेडल हासिल किया था. इस बार भी आपकी प्रेरकता नहीं थी. इसके बाद मैने इंडिया टुडे मीडिया इंस्टीट्यूट में 2015 में एडमिशन लिया; शायद आप अपने लेख में इसी बात से आगाह कर रहे थे कि कोई प्राइवेट चैनलों में एडमिशन ना ले; मगर मै कहूंगा कि एडमिशन और एकेडमिक्स बेहद जरूरी है. इसकी खास वजह ये है कि एकेडमिक्स किसी न्यूजचैनल में इंटर्नशिप करने से ज्यादा फायदेमंद साबित होती है. आपकी प्रेरकता पर फिर से सवाल खड़ा कर रहा हूं. पत्रकारिता का इतिहास पढ़ते समय मेरे हीरो पराड़करजी होते थे आप नहीं. दरअसल, पत्रकारिता उस नवजागरण काल की कोख से पैदा हुई जिसमें राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती, एनी बेसेंट महोदया, रामकृष्ण परमहंस ने सामाजिक सुधार किया था. समाज के लोगो को उन कुप्रथाओं का विरोध करने के लिए वैचारिक लड़ाई को अंजाम दिया, जिसमें सती प्रथा, बालविवाह, विधवा विवाह पर सामाजिक आपत्ति, कन्या भ्रूण हत्या और तमाम थे.
रवीशजी आप बताइए मेरे प्रेरक आप थे क्या!
मैने भारत के उस परंपरा का समर्थन किया है जो विवेकानंद हमें समझाते आये है. आप हमारे प्रशिक्षको का अपमान कैसे कर सकते है. मैने इसे अपना दायित्व समझा; क्योंकि लिखना मैने आप से भी सीखा है. मैने फिर भी अपने जीवन में किसी को अपना आदर्श नहीं बनाया. मेरे कुछ विचारों को आप #ओजसमंत्र पर देख सकते है. शायद आपको अपनी प्रेरकता पर शक होने लग जाये. शुक्रिया