अंधेरा अपनी प्रेयसी दीये के जलते ही अपने वजूद को समाप्त कर, अनहद तरीके से उससे जुड़ जाता है. ये बात उस पतंगे आशिक को नहीं पता होती है जो दीये से अमिट और सच्चा प्यार कर चुका है. उसे इस बात की भनक भी नहीं पड़ती कि दीये का एक हमसफर पहले से है. वो तो दरियादिल होता है इसलिए तुरंत दीये से जा लिपटता है. इसके बाद दीया जब उसे ये बात बताती है कि उसका हमराज़ कोई और है तो उस पतंगे के पास दीये की लौ रूपी गम में जलने के अलावा कोई चारा नहीं बचता और वो उसकी अपार प्रेम में अमर हो जाता है. वो मरता नहीं है एक मिसाल कायम करता है, उस सच्चे इश्क़ के लिए जिसे समझ जाना एक नासमझी है. दरअसल, इश्क़ समझदारी है ही नहीं. ये एक नासमझी है.
अभिजीत पाठक