(लगता है श्मशान की समझ विकसित नहीं हो पाई है. हर गांव में श्मशान नहीं होते है.)
यूपी के फतेहपुर रैली में ‘गांवों में श्मशान और कब्रिस्तान’ को लेकर प्रधानमंत्री ने कहा कि गांव में अगर कब्रिस्तान बनता है तो श्मशान भी बनना चाहिए. हैरत की बात है कि आप जिस लोकसभा क्षेत्र के सांसद है उसका पूरा नाम(प्राचीन नाम) ‘अविमुक्त श्मशान’ है. गंगा आरती करने वाले लोगो से भी इस बात की जानकारी ली जा सकती थी कि इसका नाम अविमुक्त श्मशान क्यों रखा गया है!
पुराणों में ऐसा उल्लिखित है कि काशीनगरी शिव के त्रिशूल पर है और ये प्रलयकाल में भी समुद्र में नहीं डूबेगी. वाराणसी शिवनगरी भी कही जाती है. शिव और पार्वती ने एक समय में यहां अधिवास भी किया था.
वाराणसी के इर्द-गिर्द जो जिले हैं; उनमें दुर्भाग्यवश अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो एक बड़ा तबका काशी में ही अंतिम दाह करवाता है. ये एक चलन है.
काशी के परिप्रेक्ष्य में संस्कृत का ये श्लोक भी आपके सनातन ज्ञान को थोड़ा विकसित ही करेगा.
मरणं मंगलम् यत्र, विभूतिश्च विभूषणम;
कौपीनं यत्र कौन्तेय, सा काशी केन मीयते.
जहाँ मरण भी मंगल हो उस पुरी का नाम काशी है. ऐसा माना जाता है कि काशी में मरने से स्वर्ग मिलता है तो कुछ वृद्धजन वही जाकर बस जाते है.
खैर, पुराणों की बातों से इतर अगर आज का भी परिदृश्य देखा जाय तो यहीं मिलता है कि बनारस या वाराणसी में भी हर रोज लाखों अन्तिम संस्कार संपादित किए जाते है. रही बात छोटी नदियों की तो, हर गांव में नदी होती नहीं है कहीं-कहीं 10 गांवों पर एक नदी है, कहीं 20 तो कहीं इसकी संख्या 50 भी है.
आप हर गांव में श्मशान घाट बनवाने चले है. राजनीति और कर्मकाण्ड दो अलग बिषय है, कर्मकाण्ड में 10 दिशायें होती है, क्रमशः – पूर्व, ईशान, उत्तर, नैऋत्य, पश्चिम, अग्निकोण, दक्षिण और वायव्यकोण इसी के साथ दो और उर्ध्व यानी आकाश और अर्ध यानी पृथ्वी. मगर आपको तो चार दिशाओं यानी भूगोल की भी पूरी जानकारी नहीं है. अगर होती तो ये पता होता कि गंगा भारत में बहने वाली सबसे बड़ी नदी और देश भर में इसके लाखों घाट है और गंगा हर गांव तक नहीं पहुंचती.
एक बात और सनातन धर्म में तीन पंथ है, शैव, वैष्णव और शाक्ति. इनको समझने वाले हर गांव में घाट होने की बात नहीं करेंगे.
आपने उज्जैन के महाकाल की भस्म आरती तो देखी ही होंगी. दुनिया का सबसे बड़ा सच है कि एक दिन सबको मरना है. मगर सबको उसके गांव में ही जलाया जाना होता है ये सबसे बड़ा झूठ है. आप मरने और जलाने, दफनाने की राजनीति ना करके दुश्वारियों में जी रहे किसानों को उनके हालातों से उबारने की बात करते तो कितना अच्छा होता.
मसलन, सनातन और इस्लाम में यहीं अंतर है कि सनातन अपने उदय और विस्तार के लिए नहीं सोचता, इसी के साथ इस्लाम 800 साल पहले भारत इस्लाम के विस्तार के लिए ही आया था.
अभिजीत पाठक (विश्लेषक)