आपको इस कहानी की प्रस्थिति ठीक सुदामा और कृष्ण की तरह लगेगी, लेकिन थोड़ा सा भावविभोर होने वाले पल इसके भीतर नहीं है.
मोदीजी जब चाय बेचते थे तो उनके कहे के मुताबिक उनकी राजनैतिक सोच उसी दौर में विकसित हुई. इस कहानी में एक काल्पनिक पात्र जबरन घुसाया जा रहा है. हो सकता है इसका वास्तविकता से भी कुछ संबंध रहा हो. मगर, मेरे मन में तो ये पूरा दृश्य अभी-अभी आ रहा है.
मोदीजी के बचपन का एक दोस्त था कंगालपति. कंगालपति ने मोदीजी से कहा था कि अगर हममें से कोई भी बड़ा आदमी बनता है तो मिल-बांटकर खाने में क्या हर्ज होगा. मोदी ने बचपने में कंगालपति से हथबज्जी कर ली थी और अब वो कंगालपति को भूल चुके थे.
कंगालपति ने भी सुदामा की तरह तीन-चार बच्चों को प्रोड्यूस किया था. मगर ये द्वापर युग तो था नहीं कि बच्चे भिक्षा मांगकर काम चलाये. सर्व शिक्षा अभियान के मास्टरजी घर पर आये थे तो कंगालपति की बीवी ने सबको वहीं भेज दिया. बच्चों को मिड-डे-मिल भी मिल जाता था. दोपहर का भोजन वहीं पर कर लेते थे.
कंगालपति द्वापर कालीन नहीं थे. तो भी ब्राह्मण होने की वजह से इस बार भी उन्हें आरक्षण की वजह से नौकरी नहीं मिल पाई थी. कट आॅफ की वजह से कंगालपति हर बार बाहर हो जाते थे.
कंगालपति अब सामाजिक मर्यादा तोड़ना नहीं चाहते थे तो उन्होनें ठीके का काम करना शुरु कर दिया. ठीके का काम हरदम नहीं मिलता था तो उन्होनें मनरेगा में भी अपना नामांकन करवा लिया. 100 दिन का काम मिल जाने से कुछ राहत मिल जाती थी, कंगालपति को.
एक दिन शाम के समय कंगालपति दारु पीकर आये तो उनकी बीवी ने कहां कि राशन का सामान कब लायेंगे, बच्चे रो रहे है. कंगालपति ने अपनी बीवी को लतियाना शुरू कर दिया. अब क्या करे जो पैसा मिला था उसका तो जी भर के चढ़ा लिये थे.
अब बेचारे परेशान, बीवी भी राशन के लिए कुछ कह नहीं रही है. सुबह हो गई. बच्चे स्कूल चले गये.
तभी एक चायवाला आया. उसके पिता थोड़े सनक गये थे और सबको बुला-बुलाकर कह रहे थे कि मेरा बेटा भी नरेन्द्रजी की तरह ही एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा. इस केतली में जो चाय है उसका नाता वर्तमान प्रधानमंत्री से बहुत खास है.
दरअसल,जबसे उसने सुना कि मोदी प्रधानमंत्री बन चुके है तो अब बेटे को यहीं कहता है कि तू बस टीवी पर देखकर बोलना सीख ले. बाक़ी के काम तो मोदीजी अपनी विरादरी के हित में ही करेंगे और हाँ तू तो आरएसएस के युवा मोर्चा बजरंग दल का सदस्य भी है. अगला प्रधानमंत्री बनने से तूझे कोई नहीं रोक सकता.
खैर, कंगालपति अपनी सेकंड हैण्ड ली हुई हीरो होण्डा पर चढ़ गया. बीवी ने कहा अब घर छोड़ने की जरुरत नहीं है और अगर जाना है तो दुश्वार, बदहाल और लाचार को साथ लिए जाओ. हमार नाम ‘हेकड़ी बा, कहीं ना कहीं से पेट पाल लेंगे.
हेकडी सुन तेरे इस कंगालपति पति के पास एक रास्ता है. मेरा दोस्त मोदियां(साॅरी बचपन का दोस्त हैं तो) प्रधानमंत्री बन गया है. वो मदद करेगा. एकाध करोड़ तो यूं दे देगा. दोनों अपने लोकगीत पर थिरकने लगते है.
किसी तरह कंगालपति अपने गांव से प्रधानमंत्री आवास तक तो आ गया. लेकिन सुदामा की तरह उसे द्वारपाल नहीं मिले.
तो सोचने लगा कि कहीं वो मुझे पहचानेगा की नहीं.
शाम हो गई तो एक आदमी ने बहुत मिन्नत करने पर उसकी बात का जवाब दिया. उसने कहां अरे भईया मोदीजी से मिलवा दोगे. उसने जवाब दिया कि भाई वो तो एक साथ पांच देशों के लिए रवाना हो गए है. इतना कहकर वो चला गया.
कंगालपति मन में सोच रहा है कि – अबे; आदमी एक, देश पांच, जायेगा कहां.
अब उसे एक और सज्जन मिल गये. उनसे कंगालपति ने पूछा- अरे भाई ये मोदीजी का संपर्कसूत्र मिल जायेगा क्या? जवाब मिला- नहीं, लेकिन आज सटरडे है कल वो मन की बात करेंगे.
फिर कंगालपति सोचने लगा कि मेरे मन की बात मोदी को कैसे पता चलेगा. लगता है राजनेता बनने से पहले मोदी ने ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन किया है. तभी तो वो सबके मन की बात करता है.
उसने झटपट रेडियो खरीदा और घर चलते बना. रेडियो पर मोदीजी के मन की बात की शुरूआत कुछ इस प्रकार हुई.
‘मेरे देश के प्यारे-भाईयों और बहनों हमने मिड-डे-मिल को 6 साल से 14 साल तक के बच्चों के लिए बनाये रखा. कंगालपति ने मन में सोचा, हाँ ये बात तो सही है दुश्वार, बदहाल और लाचार तीनों दोपहर का खाना वहीं खाते है.
फिर मोदीजी ने चिल्लाते हुए कहां- जब आपके पास कोई काम नहीं होता था, तो भाजपा ने आपको गांव में मनरेगा के अंतर्गत काम दिया कि नहीं दिया, मेरे प्यारे भाईयों और बहनों, आप मुझे बताइए.
कंगालपति ने फिर सोचा कि हां ये तो पूरी-पूरी मन की ही बात कर रहा है.
अब कंगालपति गुस्से में आकर बोलना शुरू किया-
‘जब ये बात थी तो क्यों कहा था कि जो कमाना शुरू करेगा वो अपना पैसा सांझा करेगा.
तब तक रेडियो पर गाना बजने लगता है-
‘अरे..,, द्वारपालों कन्हैया से कह दो….,,
अभिजीत पाठक(लेखक)
Damn Good man.. Keep Going Brother.. Stay Blessed.. We are with You..
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