डिजिटल गांव का कन्सेप्ट बड़ा ही मजाकिया लगता है. गांव में किसान रहते है, जो खेती और निम्नवर्ग के उद्योग करके किसी तरह अपना जीवन व्यतीत कर रहे है. आजादी के 70वें साल में कदम रखने के बाद भी गांव के लोग कुटीर उद्योग करने का भी साहस नहीं कर पाते है.
जिस समय नोटबंदी हुई थी, किसान अपने पुराने पैसों को एक्सचेंज करवाने के लिए जब बैंकों की लाइनों से घर आ रहे होते थे; तो कोई विकल्प ना रह जाने के बाद वो अपना पैसा बदलवाने एक यूनिट पर जाते थे, जहाँ उन्हें अपने पैसे का काफी हिस्सा बट्टे के रूप में देना पड़ता था. बैंक की नई शाखाएं शहरों में खोली गई और दूर-दराज के गांवों में बैंकों पर ताले थे. जिस यूनिट पर लोग पैसे बदलवाने जा रहे थे उनका और बैंक मैनेजरों का मजबूत साठगांठ था.
आज देश के कुछ किसानों की परिस्थिति ऐसी हो गई है कि वो बिजली का बिल देने में भी सक्षम नहीं है. अब इस हालात में उनके पास दो रास्ते है कि आजाद भारत में रहकर वो अंधेरे की गुलामी करे या फिर चोरी छिपे बिजली का तार खंभों पर लटकाने के लिए विवश हो.
अब सरकारे तय करें कि जिस देश में किसानों की आत्महत्याएं बंद नहीं हो पा रही, उन दुश्वारियों में उनके छोटे से मुनाफे का टैक्स भरना कितना सही होगा. ये टैक्स उस लगान से कम नहीं होंगे जो अंग्रेजों ने ब्रिटिश व्यवस्था में लगाया था.
एक गांव का मैने जायजा लिया तो मुझे मिला कि उस पूरे गांव में केवल तीन लोगो के पास ही बिजली के कनेक्शन है. गांव वालों से मैने इस बारे में बात की तो जवाब मिला कि लाइनमैन आते है और हर घर से कुछ पैसे ले लेते है. अगर हम कनेक्शन करवा भी लेते है तो हमारी स्थिति ऐसी नहीं है कि हम बिजली का बिल चुका पाये.
बिजली की समस्या से जूझ रहा भारत गांव को डिजिटल कैसे बना पायेगा. अगर बना भी लेगा तो बिजली का बिल चुकाने की फेहरिस्त में फिर वही अंग्रेजियत वापस लौट आयेगी.
डिजिटल गांव बनाने से पहले उसे गांव बनाना होगा, गांव में जिन किसानों के पास कम खेत है वो मजदूरी करते है.
बिहार और यूपी में कुछ जगहों पर मजदूरी सिर्फ और सिर्फ 80 रू. है. अब कोई समझाये कि ये 80 रु. इस अंधेर नगरी के लोकतन्त्र को दागदार नहीं करती. असमानता की ऐसी खाईं है इस देश में कि लोग बदहाल हो रहे है. उन्हें सपने दिखाये जा रहे है. उन सपनों में डिजिटल गांव दिखाये जा रहे है. इन डिजिटल गांवों के विकास और उद्यमिता की बिजली काट दी गई है.
-अभिजीत पाठक
(धारा के विरुद्ध संघर्ष का संकल्प)