ओंकार, नटराज, महादेव, त्रिपुरारी, जटाधीश, आशुतोष और शिवशंकर और भी कई उपनामों से विख्यात; हिन्दू दर्शन, व्याकरण, संगीत और एक कथाकार के रूप में भोले ना जाने कितने मनों में रमें हुए है. उनके हर नाम के पीछे एक लंबी-चौड़ी कहानी है.
हम आपको सबसे पहले माँ पार्वती और भगवान भोलेनाथ के मिलन के इस महापर्व के बारे में बताने की कोशिश करेंगे. पौराणिक कथाओं के अनुसार तो शिव और पार्वती अनादिकाल से एक साथ ही थे तो फिर पर्वतराज हिमालय की बेटी पार्वती की कथा भी तो कही और सुनाई जाती है. दरअसल, शिव के अर्द्धनारीश्वर रूप का मकसद यहीं था कि लोग शिव और शक्ति को दो ना समझे. अर्द्धनारीश्वर रूप में भगवान शंकर ने और माँ पार्वती ने एक ही शरीर धारण किया था जिसमें आधा शरीर शिव का था और आधा शरीर माँ पार्वती का है.
पार्वती पूर्वजन्म में प्रजापति दक्ष की बेटी के रूप में जन्म लिया था. दक्ष ने शिव को अपने यज्ञ में नहीं बुलाया तो सती ने अपने पति का अपमान समझते हुए यज्ञवेदी में ही आत्मदाह कर लिया. इसके बाद शिव घोर समाधि में बैठ गए.
अगले जन्म में वहीं सती पार्वती रूप में पर्वतराज हिमालय की बेटी बनती है. नारद के अगुआई में शिव और पार्वती की शादी तय हो जाती है.
शिवरात्रि इसी मिलन का महापर्व है.
शिव बैल पर सवार होकर हिमालय के द्वार तक आते है. बरातियों में भूत प्रेत, नाग, गंधर्व, देवता सभी शामिल होते है. आरती उतारने के लिए द्वार पर पार्वती की माँ मैना खड़ी है. ऐसा नजारा देखकर वो बेहोश हो जाती है. शिव और पार्वती का विवाहोत्सव तीनों लोको में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. पार्वती कैलाश पर आती है. कार्तिकेय और गणेश इनके दो पुत्र बड़े ही विद्वान और कुशल योद्धा बनते है.
भारत में महाशिवरात्रि का ये त्यौहार बड़े ही धूमधाम के साथ संपादित किया जाता है. भक्तगण भगवान को बेर, भांग, बिल्वपत्र, धतूरा चढ़ाकर जलदान करते है.
उनकी सोलह उपचारो से पूजा की जाती है. आरती होती है. लोग व्रतोपवास भी रहते है. रुद्राभिषेक होता है. कहीं-कहीं शिव पार्वती विवाह की लीलाये भी होती है.
लोग शिवमय हो उठते है. हर-हर महादेव के अनुनाद से आकाश शब्दायमान हो जाता है. इस त्यौहार पर शिव को प्रसन्न किया जा सकता है. वे आशुतोष है यानी बहुत ही जल्दी अपने भक्तों की प्रार्थना सुन लेते है. आइये इस त्योहार पर उस अनादिपुरूष में ध्यानमग्न होकर निर्वाण के लिए सोचते है.
ऊं नम: शिवाय ‘पंचाक्षर’ कहा जाता है. इसके उच्चारण मात्र से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है.
चन्द्रशेखर नाम भी इनके भक्त बड़ी श्रद्धा से लेते है. इनके सिर पर चन्द्रमा शोभा पाता है. त्रिशूल, डमरू, नाग और बाघाम्बर से सुसज्जित भगवान शंकर सबके सहारे बने.
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