(अगर ये सम्प्रदाय किसी देश की गणतांत्रिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हो तो कुछ समय के लिए देशहित में उस देश के लोगो को सम्प्रदाय का रखरखाव छोड़ नहीं देना चाहिए)
कोई नेता मंच पर आता है और वो हमें बता रहा होता है कि हम कितने हिंदू, कितने मुसलमान, कितने सिख और कितने ईसाई हैं. वो कहता है तो हमारा हिंदुत्व बाहर निकल कर आने लगता है. उसके बताने के बाद हमें इस्लाम का मकसद पता होता है.
जो कभी मंदिर नहीं जाते, अचानक उनको लगता है कि कितना अन्याय हुआ ना! मध्यकाल के मुसलमानों ने कितनी ज्यादती किया था. कुछ नजदीकी तो यहां तक कहते है कि आदित्य नाथ योगी को ताजमहल में शिवालय दिखता है, बहुत साल पहले वहां शिवलिंग भी था.
मान लिया कि देश का एक महंत हिंदुत्व को बनाये रखने के लिए कुछ भी बोल रहा है, मगर आप तो कम से कम पढ़े-लिखे लोग है. आपको ये नहीं समझना चाहिए कि जिस देश के पुरातत्वविदों ने मैसोपोटामिया, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी सभ्यताओं का पुरा लेखा-जोखा, नगरीकरण के सबूत और उनका रहन-सहन सबकुछ बता दिया वो मध्यकाल में निर्माण किए हुए इस ताजमहल के पाषाण का अध्ययन क्यों नहीं कर रहे.
इसी तरह कई लोगो का मानना है कि सरस्वती नदी को सल्तनत काल के किसी शासक ने पटवा दिया. कोई भी शासक ऐसा क्यों करेगा! किसी नदी से किसी शासक को क्या नुकसान हो सकता है.
इसी तरह ओवैसी को पूरी रामकथा और गोमाता के बिषय का अपार ज्ञान है, उनके स्पीचेज बहुत ही घटिया किस्म के है. ऐसा यूट्युब पर देखा और सुना जा सकता है.
जाकिर नाईक,(मसलन ये राजनीति से बाहर है. लेकिन भारत में लोग किताबें नहीं पढ़ते है बल्कि प्रवचन और बेमतब के धार्मिक ज्ञान का अनुशीलन करते है) ये तलाक का पक्ष लेता है, पर्दा प्रथा का पक्ष लेता है, मस्जिदों में महिलाओं को ना जाने को कहता है और लाखों लोग इसे सुन रहे होते है. ये है उत्तर आधुनिकता, जिसमें शिक्षा को बस नौकरी और कमाई से जोड़ दिया गया है और डटकर विरोध करना होगा.
भारत के लोग कम शिक्षित और ज्यादा मजहबी होने के चक्कर में राष्ट्रनिर्माण का विरोध कर रहे है, ये उनकी मानसिक संकीर्णता है. ये उनकी बहुत बड़ी भूल साबित होगी.
भड़काऊ भाषण(Hate Speech) पर संवैधानिक रोक के बाद भी अगर ये खबरों में है तो इसका मतलब ये हुआ कि पुलिस अपने काम को सही तरीके से नहीं कर रही और इनके ऊपर राजनेताओं का प्रेशर रहता है.
जो चीज़ संविधान का विरोध करती हो, उसके बचाव के लिए एक कानून ऐसा बनाया जाना चाहिए कि लोग भड़काऊ बोलने से पहले दस बार सोचे.
-अभिजीत पाठक