(नैतिक मूल्यों को ताक पर रख चुका युवा, भारत के अच्छे कल का निर्माण कैसे करेगा!)
नफरत और हिंसा की तस्वीर उस हिंदुस्तान में दिख रही है जहां का विचारपक्ष कभी इस हद तक मजबूत हुआ करता था कि नये सोच और विचारों के सामने बड़े से बड़े साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी घुटने टेक देता था. जिन विदेशी कंपनियों ने भारत में अपने उपनिवेश स्थापित किए थे, उन्हें इस धरती को इसीलिए छोड़ के जाना पड़ा क्योंकि यहां के विचारवान लोग अपनी बातें बहुत ही बेबाकी से रखने में माहिर हुआ करते थे. गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को ये पता था कि भारत को आजादी तभी मिल सकती है, जब यहां के लोग खुद से अपना नुकसान और फायदा सोचने लायक हो जायेंगे.
पत्रकारिता कभी-कभी पक्षधर(Biased) भी होनी चाहिए. ये स्थिति तब आनी चाहिए जब देशहित दांव पर लग चुका हो. वैचारिक संकट की उपज बढ़ रही हो. बुद्धिजीवियों को इसका फर्क ना पड़ रहा हो, उस समय ये जरूरी होता है कि पत्रकारिता किसी वंचित तबके के पक्ष में लिखना शुरू कर दें. उस शोषण का पक्ष लेना शुरू कर दे जिसको व्यवस्था ने ही लताड़ा हो.
इस देश की नौजवानी जिस तरफ पूरे उत्साह के साथ कदम बढ़ा देगी, कारवाँ उसी तरफ बनता चला जायेगा. कलम और युवा जब साथ-साथ चलना शुरू कर देते हैं तो बड़े से बड़े अराजकतावादी घुटने टेक देते है. जिस दिन से देश का हर युवा अपनी बात को बिना डरे लिखने से नहीं कतरायेगा उसी समय इस वैचारिक मुठभेड़ में व्यवस्थाओं की पोल खुल जायेगी.
इस देश में बहुतेरे समाज है. हर समाज का एक लोकाचार होता ही है. संविधान बस इसलिए नहीं बना था कि बहुत सारे पब्लिकेशन उसे छापकर अच्छा खासा पैसा कमायेंगे बल्कि संविधान इन लोकाचारों के बीच जो मतभेद बनते है उनको मिटाने के लिए बनाये गये थे.
आजाद हिंदुस्तान में इसी एकता को तोड़ने का प्रयास नेता और मंत्री कर रहे है. हमें एक तरफ लिंग, जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के हिसाब से ना बांटने की वकालत हमारा ये संविधान करता है तो वहीं चुनावी भगदौड़ में आरक्षण; एक विशेष जाति को दिया जाने वाला सुरक्षात्मक पद, दलित-विमर्श, ब्राह्मणवाद; ये दोनों शब्द गैर-संवैधानिक कहे जा सकते है क्योंकि संविधान हमें जातीय समानता प्रदान करता है. चुनाव के समय अगर आप किसी एक धर्म के प्रतीक स्थल पर जाकर एक विशेष समुदाय को तितर-बितर कर रहे हैं तो ये भी गैर-संवैधानिक हुआ क्योंकि संविधान धर्म के हिसाब से देश को बांटने के पक्ष में नहीं है. महिला अशिक्षा, भ्रूणहत्या; ये लिंगभेद के उदाहरण है. इसमें दहेज प्रथा और महिलाओं का शोषण भी शामिल किया जा सकता है.
अगर इस देश के लोग मिलकर नहीं रहेंगे तो आगे चलकर हमें नफरतों का और सैलाबी मंजर देखने को मिल सकता है.
हमें धर्म इतना प्यारा क्यों हो गया कि हम विज्ञान याद नहीं रख पाये. धर्म बांटता है. विज्ञान कहता है कि सभी मानव जाति के है. हर आदमी कार्डेट्स है, हर इंसान बुद्धिमान मानव है जिसका वैज्ञानिक नाम(होमो सैपियंस सैपियंस) है.
ये देश नये किर्तिमान गढ़ सकता है. इसके लिए बस एक शर्त है कि हम सभी पाबंदियों को तोड़कर एक हो जाये.
अन्तरजातीय विवाह को बढ़ावा देना चाहिए. इस समाज को पुरानी कुप्रथाओं से बाहर आना होगा. इस लोकाचार को सामंजस्य के साथ सोच-समझकर समाप्त कर देने में ही भलाई है.आजादी तभी सार्थक हो पायेगी जब हम मंदिर में सुबह की आरती करें. दोपहर की नमाज़ अदायगी मस्जिद में हो, गुरूद्वारे में बैठकर कुछ सीख लिया जाये और चर्च में एकेश्वरवाद पर बहस हो सके.
-अभिजीत पाठक