मै भारत हूं, एक समय मेरी फिजाओं और बयारों में विदेशी नाविक और व्यापारी खो जाते थे. वो खुद के अस्तित्व को भूल जाते थे. इस सोंधी माटी में घुल-मिल जाते थे. मै संभववाद और आशावाद के धरातल के रूप में दुनिया में जानी जाती थी. मेरे बेटे विचारवान होते थे. देशहित में जान देने के लिए तैयार बैठे रहते थे. वे ढोंगी राष्ट्रवादी नहीं थे. वे गाँधी थे, भगत, सुभाष, आजाद और अशफाक थे. वे साहसी थे. मेरे बेटे गाँधी ने तो चरखा उठाकर राष्ट्रवाद ला दिया था. नेहरू ने डिस्कवरी आॅफ इंडिया लिखकर राष्ट्रवाद ला दिया था. भगत ने फांसी के फंदे को चूमकर राष्ट्रवाद ला दिया था. प्रेमचंद की किताब सोजे वतन जब जलाई जा रही थी तब भी राष्ट्रवाद आया था.
गाँधी ने एक सपना देखा था. भयरहित भारत का सपना. इस देश के लोग बिना डरे और सहमे इस चमन में सांस ले सके. भारत के लोग आर्थिक समानता पा सके. जब मै ब्रिटिश भारत से भारत बना, मुझे आजादी मिली. उस दौरान मैने भी सपना देखा था. उस सपने को चकनाचूर करने में मेरे अपनों का ही हाथ है. मेरा भी मन था कि बच्चे मिलकर इस देश में शांति और सौहार्द का मिसाल कायम करेंगे. मैने गलत सपना देख लिया था. मौजूदा हालात देखकर अब अपने ही बच्चों से एक माँ को नफरत सी होने लगी है. कोई माँ अपने बेटे को बिगड़ता हुआ कैसे देख सकती है. मुझे लगा था कि गुलामी लोकतन्त्र की स्थापना के साथ ही धीरे-धीरे समाप्त हो जायेगी लेकिन हुआ ठीक इसका उल्टा.
मुझे अगर पता होता कि मेरे अच्छे बेटों की शहादत का यहीं हश्र होना है तो मै उन्हें देश को आजाद करवाने के लिए मरने से रोकती. मै उनके बलिदान को जाया होता नहीं देख सकती.
मेरी आंखों के सामने मेरे कुछ असामाजिक बेटे मेरी मासूम सी बच्चियों के साथ ज्यादती करते रहे. बलात्कार करते रहे और शोषण, अत्याचार और भ्रूणहत्या करते रहे. ऐसे बेटों को तो बेटा कहना भी पाप है. इनको तो फांसी ही नहीं, चौराहे पर खड़ा कर गोली मार देनी चाहिए.
मेरे कुछ बच्चे जब भूख से तिलमिलाते है तो बहुत ही दुख होता है. कभी-कभी तो अपने अमीर बच्चों से घृणा सी होने लगती है. गरीबी और अमीरी के गड्ढे को पाटने के लिए ही तो योजना और फिर नीति आयोग बनाई गई थी.
सरकारों को बस इतना ही तो करना था कि अमीरो पर टैक्स लगाकर गरीबों में सब्सिडी बांटे. खैर आजकल तो देश को मन की बात सुनाने वाला प्रधानमंत्री मिला है, जिसको चीन के अलीबाबा कंपनी के 40 फीसदी शेयर पर चलाई जा रही कंपनी पेटीएम पर पूरा भरोसा है.
कश्मीर मेरा एक स्वायत्त प्रांत है मगर मुझसे अलग बिल्कुल भी नहीं. कश्मीर की हालत देखकर इस बात का दुख होता है कि जिस कश्मीर को मैने सीने से लगाये रखा उसने मेरी ममता का यहीं सिला दिया. इस प्रदेश को देश से अलग करने वाले लोगो से मै कभी सहमत नहीं हूं. दरअसल, जो नेता ऐसा चाहते है और एक बहुसंख्यक आबादी को रोजगार ना देकर, भड़का रहे हैं वो लोग उचित नहीं कर रहे.
इस कड़ी में कुछ बातें और है. जिन्हें समझकर ही आप सभी राष्ट्रवाद लाये तो सही होगा.
मत करो राष्ट्रवाद का तुम काम तमाम,
कई युग लग जाते है राष्ट्रवाद लाने में.
#ओजस
-अभिजीत पाठक