‘अगर कांग्रेस का हाथ मुख्यमंत्री अखिलेश के साथ नहीं होता तो भी अखिलेशजी को कोई नुकसान नहीं होता’ – पूर्वी यूपी के एक दोस्त से फोन पर जो बातें हुई, उनमें सबसे मुख्य बात यहीं हो पाई.
अखिलेश यादव और नरेन्द्र मोदी के स्पीचेज में बहुत बड़ा फर्क देखा जा सकता है. पहले शुरूआत करते है प्रधानमंत्री मोदी से. प्रधानमंत्री के भाषण का मुद्दा अक्सर गरीब बनाम अमीर होता है. वे कहते है कि जिन लोगो ने भी कालाधन छुपाकर रखा है, मोदी उसे चैन से रहने नहीं देंगे. यानी प्रधानमंत्री अपने भाषणों में अपना नाम प्रयुक्त करते है. वे कई बार ऐसा भी कहते है कि काम बोलता है कि कारनामा बोलता है.
यहां गौर करने वाली बात ये है कि मुख्यमंत्री अखिलेश अपनी बातें बेबाक ढंग से रखते है. गठबंधन का हवाला देते है. नोटबंदी से आर्थिक सुधार नहीं हुआ इस बात पर जनता के लोगो में जाने का प्रयास करते है. उनकी रैलियों में आपने बहुत ही कम या बिल्कुल ही नहीं सुना होगा कि अखिलेश ने फलाना काम कर दिया, वे कहते है कि समाजवादियों ने ये काम किया. अगर केन्द्र के कामों पर थोड़ी तंज कसना हो तो वो कहते है कि इस क्षेत्र की जनता मुझे बताए और मोदीजी से पूछे कि जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है वहां लैपटॉप क्यों नहीं बांट रही. वो ऐसा भी कहते है कि मोदी गुजरात के तीन बार सीएम बने, लेकिन मेट्रो नहीं चला सके.
इस बीच अखिलेश के विरोधियों को गठबंधन पर बोलने का मौका खुद अखिलेश यादव ने दिया है. कई युवा यूपीवासियों से बात करने पर ये बात साफ निकल कर आती है कि अगर कहीं पर सपा को गठबंधन का फायदा है तो कहीं तो भारी नुकसान होने की भी संभावना है.
लखनऊ से निकलते हुए जो लोग पूर्वी यूपी में रैलियां कवर कर रहे है और आखिर में जाकर वाराणसी पहुंच रहे है. उनका मानना है कि गठबंधन ना भी हुआ होता तो अखिलेश को कोई विशेष नुकसान नहीं होता. विपक्ष के लोग भी एक राज्यस्तरीय पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के मुकाबले बेहतर मानते है. ..,, तो अगर कल को सपा को यूपी में और कांग्रेस को देश के एक राज्य की चुनावी लड़ाई में कोई उपलब्धि हासिल नहीं होती है तो जाहिर होगा कि साइकिल चलाने वाले लोग किसी भाग्यविधाता हाथ के पंजे के बलबूते साइकिल नहीं चलाते थे बल्कि अपने स्तर और विकास का पथ सुनिश्चित करने के लिए ऐसा करने के लिए विवश थे.
– अभिजीत पाठक